मां परसंडा मंदिर में दंडवत देने से पूरी होती है भक्तों की मनोकामना, पूजा के दौरान अर्पण करें यह सामग्री
नवरात्रि के अवसर पर कलश स्थापना से महानवमी तक यहां भक्तों की काभी भीड़ जुटती है. इस मिंदिर में दंडवत देने की प्रथा काफी पुरानी है.
दूर-दूर से आए श्रद्धालु: दंडवत देने आए श्रद्धालुओं ने मां दुर्गे की भक्ति में लीन होकर उन्हें नमन किया. जिसके बाद उन्होंने कंचन काया और अपने स्वजनों के लिए कुशलता की कामना की. सदियों से चली आ रही इस दंडवत देने की प्रथा को लेकर इस इलाके में एक ही कहावत प्रचलित है. गिद्धौर के पावन उलाय नदी तट पर स्नान ध्यान कर मां को दंड प्रणाम करने से मां परसंडा अपने भक्तों के सारे कष्टो को हर लेती है.
दंडवत प्रणाम करने से होती है पुत्र की प्राप्ति:सच्चे मन से भक्तों द्वारा मांगी हर मुराद को मां पुरी करती है. दशहरे में दंडवत देने के लिये दूरदराज से आ रहे श्रद्धालुओं में बच्चे, जवान और बुढ़े सभी शामिल हैं. ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म में वर्णित उज्वलिया नदी वर्तमान में उलाय नदी और नाग्नी नदी के संगम जल में स्नान कर जो दंपति मां को दंड प्रणाम करते हैं, उन्हें गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.
“पौराणिक काल से ही कई धार्मिक ग्रंथों में भी गिद्धौर के मां दुर्गा मंदिर की ऐतिहासिकता का वर्णन है. यहां दूर-दीर से श्रद्वालु आते हैं और मिंदिर में दंडवत देने की प्रथा का पालन करते हैं. जो दंपति मां को दंड प्रणाम करते हैं, उन्हें गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.” –बाल्मीकि पांडेय, पुजारी
पूजा के दौरान अर्पण करें यह सामग्री: दंडवत देने आनेवाले श्रद्वालुओं द्वारा दंडवत देने के उपरांत फुल, बेलपत्र सहित कई तरह के नैवेद्य को अर्पण कर मां परसंडा की पूजा अर्चना करनी चाहिए. दंडवत देने की यह प्रथा प्रथम पूजा से लेकर महानवमी तक अनवरत चलती रहती है. इसके लिए बिहार और अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं.
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