ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे नीतीश ने ठगा नहीं: अपने हर पुराने सहयोगी को ठिकाने लगाया, जानिये बिहार के CM की सियासी कहानी

GridArt 20231002 214636417

जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव, दिग्विजय सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, आरसीपी सिंह और ललन सिंह. क्या आपको बिहार ही नहीं बल्कि देश की सियासत के इन दिग्गजों के बीच कोई समानता दिख रही है? अगर नहीं समझ पा रहे हैं तो हम बताते हैं. ये वो लोग हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार की उनके मुश्किल समय में मदद की, उन्हें केंद्रीय मंत्री से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया. लेकिन जैसे ही मौका मिला नीतीश कुमार ने इन सबको ठिकाने लगा दिया. शायद तभी लालू यादव से लेकर तेजस्वी यादव कभी लगातार कहा करते थे-ऐसा कोई सगा नहीं जिसे नीतीश ने ठगा नहीं।

जार्ज से शुरू हुई थी कहानी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन को संवारने में अगर किसी ने सबसे अहम भूमिका निभायी थी तो उस राजनेता का नाम जार्ज फर्नांडीस था. दरअसल नीतीश का राजीनितक करियर तब परवान पर पहुंचा जब वे जार्ज के साथ आये. 1994 में जार्ज की अगुआई में तत्कालीन जनता दल के 14 सांसदों ने विद्रोह कर दिया था. वे उस समय के बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ थे. जार्ज के साथ विद्रोह करने वाले सांसदों में नीतीश कुमार भी शामिल थे. जार्ज के नेतृत्व में अलग हुए सांसदों ने पहले जनता दल(जार्ज) बनाया और फिर नयी पार्टी बनी जिसका नाम समता पार्टी रखा गया।

1994 में बनी समता पार्टी के अध्यक्ष तो जार्ज फर्नांडीस खुद थे लेकिन सारे फैसले लेने के अधिकार नीतीश कुमार को सौंप दिया था. नीतीश को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बना कर 1995 में समता पार्टी ने चुनाव लड़ा था लेकिन ऐसी बुरी हालत हुई कि नीतीश औंधे मुंह गिरे. 1995 के उस विधानसभा चुनाव में समता पार्टी ने आईपीएफ नाम की पार्टी से तालमेल किया था. वही आईपीएफ अब सीपीआई (एमएल) यानि माले के नाम से जानी जाती है।

1995 में बुरी हार के बाद जार्ज फर्नांडीस के रणनीति बदली. वे समता पार्टी को भाजपा के करीब ले गये. 1996 में भाजपा और समता पार्टी का तालमेल हो गया. ये तालमेल तब रंग लाया जब 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बना लिया था. 1998 के लोकसभा चुनाव में समता पार्टी ने 12 संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी. इसमें 10 बिहार के तो 2 उत्तर प्रदेश के थे.।

जार्ज ने नीतीश को बनवाया था मंत्री

1998 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बन रही थी तो जार्ज फर्नांडीस ने अपने प्रभाव और वाजपेयी जी से दोस्ती का इस्तेमाल कर नीतीश कुमार को कैबिनेट मंत्री बनवाया था. समता पार्टी के पास तब सिर्फ 12 सांसद थे और सांसदों की संख्या के आधार पर उसे केंद्र सरकार में एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का पद मिलना था. लेकिन उस समय के एनडीए के संयोजक जार्ज ने न सिर्फ नीतीश कुमार को कैबिनेट मंत्री बनवाया बल्कि रेल जैसा अहम मंत्रालय भी दिलवाया था. रेल मंत्री बनने के बाद ही नीतीश कुमार की लोकप्रियता बढी और वे मुख्यमंत्री पद के लिए गंभीर दावेदारों में शामिल हो गये।

2000 के विधानसभा चुनाव में जब बिहार में त्रिशंकु विधानसभा बनी तो जार्ज ने ही भाजपा से कह कर नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने पर राजी किया था. उस चुनाव में भाजपा को समता पार्टी से ज्यादा सीट आयी थी. लेकिन जार्ज के दबाव में नीतीश को मुख्यमंत्री बनवाया. 2000 में नीतीश कुमार 7 दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन बहुमत के लायक विधायकों की संख्या नहीं जुटा पाये. लिहाजा उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

ताकतवर होते ही जार्ज को किनारे लगाया

जिस जार्ज के दम पर नीतीश की राजनीति चमकी, वही जार्ज बाद के दिनों में नीतीश कुमार की आंखों में खटकने लगे थे. 2004 में शरद यादव के नेतृत्व वाली जनता दल और समता पार्टी का विलय हो गया. विलय के बाद नयी पार्टी बनी, जिसका नाम जनता दल यूनाइटेड रखा गया. इसी बीच 2004 मे लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें एनडीए की सत्ता चली गयी. नीतीश की रेल मंत्री की कुर्सी भी चली गयी थी।

लेकिन 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बन गये. नीतीश पूरी तरह ताकतवर हो चुके थे और फिर उन्होंने पार्टी पर अपने पूर्ण कब्जे की तैयारी करनी शुरू कर दी. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इसके लिए उन्होंने शऱद यादव से दोस्ती की. 2006 में जार्ज को जनता दल यूनाइटेड पार्टी के अध्यक्ष पद से जबरन चलता कर दिया गया. शरद यादव को जनता दल यूनाइटेड का अध्यक्ष बना दिया गया।

जार्ज का टिकट भी काट दिया गया

2006 में पार्टी के अध्यक्ष से हटा दिये गये जार्ज फर्नांडीज को नीतीश ने पूरी तरह किनारे लगा दिया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में जार्ज को मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से टिकट देने से इंकार कर दिया गया. उस दौर में जार्ज को ये एलान करना पड़ा था कि वे दिल्ली से पटना आकर एयरपोर्ट से नीतीश कुमार के सीएम आवास तक पदयात्रा करेंगे. जार्ज ने 2009 का लोकसभा चुनाव मुजफ्फरपुर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लडा था।

शरद भी निशाना बने

जार्ज को निपटाने में नीतीश का साथ देने वाले शरद यादव वैसे तो 10 सालों तक जेडीयू के अध्यक्ष बने रहे. हालांकि उन्हें बीच में निपटाने की कोशिश की गयी, लेकिन शरद यादव अपने सियासी चालों के कारण कुर्सी बचाते रहे. आखिरकार वो समय भी आ गया, जब शरद यादव की पारी समाप्त हुई. 2016 में नीतीश कुमार ने ये तय किया कि वे पार्टी की कमान भी खुद संभालेंगे. नीतीश कुमार के घर से शरद यादव के पास मैसेज गया-पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दीजिये. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि शरद यादव ने रोते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का एलान किया था. 2017 में शरद यादव को जेडीयू से निकाल दिया गया।

आरसीपी सिंह भी वैसे ही निपटाये गये

शरद यादव को निपटाने के बाद नीतीश कुमार ने खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान संभाली. 2020 तक वे खुद अध्यक्ष बने रहे. फिर अचानक से उन्हें ख्याल आया कि एक व्यक्ति को एक ही पद संभालना चाहिये. लिहाजा नीतीश ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आरसीपी सिंह को चुना. IAS अधिकारी रहे आरसीपी सिंह तब से नीतीश कुमार के साथ जुड़े थे जब से नीतीश केंद्र में मंत्री बने. वे केंद्र सरकार में नीतीश कुमार के आप्त सचिव थे. नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके प्रधान सचिव बन गये।

2010 में नौकरी से इस्तीफा देकर राज्यसभा सांसद बने आरसीपी सिंह लगभग तीन दशकों तक नीतीश कुमार के साथ साये की तरह रहे. 2020 में नीतीश कुमार ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया और पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. लेकिन 2021 में जब नरेंद्र मोदी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ और बीजेपी ने साफ मैसेज दिया कि वह जेडीयू कोटे से सिर्फ आरसीपी सिंह को मंत्री बनायेगी तो नीतीश कुमार की नजरों मे आरसीपी सिंह खटके. पहले उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया. फिर 2022 में उन्हें राज्यसभा भेजने से मना कर दिया गया. आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. फिर उन्हें पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

ललन सिंह पुराने वाकये भूल गये थे

आरसीपी सिंह के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये ललन सिंह शायद जार्ज, शरद और आरसीपी के हश्र को भूल गये थे. 37 सालों से नीतीश के साथ रहने वाले ललन सिंह ये भूल गये कि उन्हें भी उसी तरह से निपटा दिया जा सकता है. यही भूल उनके लिए भारी साबित हुई. ललन सिंह निपटा दिये गये. पहले के वाकये बताते हैं कि अगला कदम ललन सिंह के पार्टी से बाहर जाने का हो सकता है।

नीतीश के मारे लोगों की फेहरिश्त लंबी है

ये तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षों का हाल था. लेकिन नीतीश के मारे लोगों की लिस्ट बड़ी लंबी है. उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता इसके उदाहरण हैं. 2005 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार ने कुशवाहा वोटरों का लगभग पूरा वोट बटोर लिया था तो उसमें उपेंद्र कुशवाहा की बड़ी भूमिका थी. हालांकि 2005 में उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गये थे. लिहाजा ये उम्मीद लगायी जा रही थी कि उन्हें राज्यसभा भेजा जायेगा. लेकिन नीतीश ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा।

उपेंद्र कुशवाहा ने नाराज होकर जेडीयू छोड़ी और नयी पार्टी बना ली. उधर, नीतीश कुमार ने कुशवाहा चेहरे के तौर पर नागमणि को बढ़ाना शुरू कर दिया. नागमणि और उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा दोनों नीतीश सरकार में मंत्री बने. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में नागमणि ने विद्रोह कर दिया. तब फिर से नीतीश कुमार को उपेंद्र कुशवाहा की याद आयी. नीतीश खुद उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी की बैठक में पहुंचे और उन्हें बुलाकर जेडीयू में वापस ले आये. उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा सांसद बनाने के साथ साथ उनके समर्थकों को पार्टी में जगह देने का भी भरोसा दिलाया गया. लेकिन जैसे ही कुशवाहा आये, नीतीश अपना वादा भूल गये. बाद में कुशवाहा को जेडीयू से निपटा दिया गया।

उपेंद्र कुशवाहा ने दूसरी बार जेडीयू से बाहर निकलने के बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी नाम की पार्टी बनायी. उनकी पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 30 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में कुशवाहा जाति का अच्छा खासा वोट काटा. 2020 के विधानसभा में जेडीयू की बेहद बुरी हालत हुई. उसके बाद फिर से नीतीश कुमार को उपेंद्र कुशवाहा का महत्व समझ में आय़ा. नीतीश कुमार ने खुद उपेंद्र कुशवाहा को फोन कर बुलाया. उपेंद्र कुशवाहा जब मिलने पहुंचे तो नीतीश कुमार ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने का वादा किया. कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया. लेकिन वे जैसे ही जेडीयू में शामिल हुए, नीतीश अपनी सारी बात भूल गये. फिर से उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से बाहर जाना पड़ा।

नीतीश के शिकार बने नेताओं की फेहरिश्त लंबी है. किसी दौर में समता पार्टी में दिग्विजय सिंह का कद बड़ा हुआ करता था, नीतीश कुमार ने उन्हें किनारे लगा दिया. 2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनाने में प्रभुनाथ सिंह जैसे नेताओं ने बड़ी भूमिका निभायी थी, वे भी मौका मिलते ही निपटा दिये गये।

Sumit ZaaDav: Hi, myself Sumit ZaaDav from vob. I love updating Web news, creating news reels and video. I have four years experience of digital media.
Related Post
Recent Posts