भारत 17 अगस्त को तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इस शिखर सम्मेलन का विषय है- सतत भविष्य के लिए एक सशक्त ग्लोबल साउथ। विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य में बताया कि इसमें पिछले सम्मेलनों में विश्व की विभिन्न जटिल चुनौतियों पर हुई चर्चाओं को आगे बढ़ाने का काम किया जाएगा। इन चुनौतियों में संघर्ष, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा संकट तथा जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से विश्व का प्रभावित होना शामिल है।
सम्मेलन में ग्लोबल साउथ के देश चुनौतियों, प्राथमिकताओं तथा अल्प विकसित और विकासशील देशों की समस्याओं, विशेषकर विकास के क्षेत्रों में समाधान, तलाशने पर चर्चा करेंगे। मंत्रालय ने बताया कि पिछले दो शिखर सम्मेलनों की ही तरह यह सम्मेलन भी वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया जाएगा। उद्घाटन सत्र में राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष के स्तर का होगा, जिसकी मेजबानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। शिखर सम्मेलन के पिछले संस्करणों में ग्लोबल साउथ के 100 से ज्यादा देशों ने भागीदारी की थी।
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट एक अनूठी पहल है, जिसमें वैश्विक दक्षिण के देशों को एक साथ लाने और विभिन्न मुद्दों पर एक साझा मंच पर अपने दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं को साझा करने की परिकल्पना की गई है। यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के दृष्टिकोण से प्रेरित है, और भारत के वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन पर भी आधारित है।
हाल ही में वैश्विक घटनाक्रम जैसे कोविड महामारी, यूक्रेन में चल रहा संघर्ष, बढ़ता कर्ज, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियां आदि ने विकासशील देशों को बुरी तरह प्रभावित किया है। अक्सर, विकासशील देशों की चिंताओं को वैश्विक मंच पर उचित ध्यान और स्थान नहीं मिलता है। अक्सर, प्रासंगिक मौजूदा मंच विकासशील देशों की इन चुनौतियों और चिंताओं को दूर करने में अपर्याप्त साबित हुए हैं।
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट का उद्देश्य विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली चिंताओं, हितों और प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एक साझा मंच प्रदान करना और विचारों और समाधानों का आदान-प्रदान करना तथा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चिंताओं और प्राथमिकताओं को संबोधित करने के लिए आवाज और उद्देश्य में एकजुट होना है। भारत यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा कि वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के विचार-विमर्श में भागीदार देशों से प्राप्त मूल्यवान इनपुट को वैश्विक स्तर पर उचित संज्ञान मिले।