‘टाइगर अभी जिंदा है’… विपक्षी हल्के में लेने की न करें भूल, साल दर साल मजबूत बन कर उभरे हैं नीतीश कुमार

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दो दशक से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार की राजनीति के धुरी बने हुए हैं। जब भी चुनाव का मौसम आता है तब नीतीश बाबू के विरोधी उनकी हार को लेकर तमाम तरह के दावे करने लगते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि हर बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू (JDU) ने विरोधियों की हवा निकाल दी है।

‘हर बार नीतीश बाबू ने विरोधियों को किया पस्त’

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के आरोप लगाए थे। तेजस्वी यादव का दावा था कि लोकसभा चुनाव में आरजेडी बिहार में जेडीयू को पीछे छोड़ देगी, लेकिन जब नतीजे आए तो सारे राजनीतिक पंडित हैरान रह गए। नीतीश बाबू के नेतृत्व में जेडीयू के उम्मीदवारों ने 12 सीटों पर जीत हासिल की थी। जेडीयू के इस शानदार प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार देश में एक बार फिर बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभरे। इस बार तो केंद्र की मोदी सरकार की स्थिरता को कायम रखने में भी नीतीश बाबू की अहम भूमिका है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से आरजेडी और तेजस्वी यादव को बड़ा झटका लगा। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के प्रदर्शन ने सभी विरोधियों को चौंका दिया। बिहार में बीजेपी से कम लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़कर भी जेडीयू के ज्यादातर उम्मीदवार चुनाव जीत गए। इस लोकसभा चुनाव में बिहार की 16 सीटों पर नीतीश कुमार की जेडीयू ने चुनाव लड़ा था जिसमें 12 सीटों पर जेडीयू उम्मीदवारों के ‘तीर’ बिल्कुल सही निशाने पर लगे।

‘उपचुनाव में भी नीतीश बाबू के सामने टिक नहीं पाई थी आरजेडी’

कुछ महीनों पहले बिहार की चार सीटों पर उपचुनाव हुआ था। तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज सीट पर हुए उपचुनाव में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने इंडिया ब्लॉक को चारों खाने चित कर दिया था। इमामगंज सीट पर जहां एनडीए ने कब्जा कायम रखा था। वहीं, तरारी, रामगढ़ और बेलागंज की सीटें ‘इंडिया’ ब्लॉक से छीनने में भी एनडीए सफल रही थी। सबसे ज्यादा किसी सीट के नतीजे ने तेजस्वी यादव के लिए परेशानी खड़ी की थी तो वह थी बेलागंज। बेलागंज विधानसभा सीट को आरजेडी के दिग्गज नेता सुरेंद्र यादव का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन उनके सांसद बनने के बाद खाली हुए इस सीट पर आरजेडी को बहुत तगड़ा झटका लगा। बेलागंज ऐसी सीट थी जिस पर 35 साल से आरजेडी का कब्जा रहा था। इस उपचुनाव में जेडीयू कैंडिडेट मनोरमा देवी ने सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ को 20,968 वोटों से हरा दिया। इस तरह से नीतीश बाबू के कैंडिडेट ने बेलागंज में आरजेडी का किला ध्वस्त कर दिया। तरारी सीट जो माले का मजबूत गढ़ मानी जाती थी यह भी बीजेपी ने इंडिया गठबंधन के पाले से छीनने में सफलता हासिल की। वहीं आरजेडी के सीनियर लीडर जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह को रामगढ़ के चुनावी रण में उतारा गया था, लेकिन वह तीसरे नंबर पर खिसक गए। अजित सिंह की करारी हार के बाद से ही जगदानंद सिंह राजनीतिक नेपथ्य में चले गए हैं। चार सीटों पर हुआ उपचुनाव बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक ताकत को परखने का सबसे बड़ा मंच था, लेकिन इस रण में आरजेडी के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन जीरो पर आउट हो गई।

‘उपचुनाव के नतीजों के बाद से भ्रम में है आरजेडी का नेतृत्व’

पहले लोकसभा चुनाव और इसके बाद विधानसभा उपचुनाव के नतीजों से आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव को बिहार की जमीनी हकीकत का पता चल गया। लालू यादव को ये महसूस हुआ कि कांग्रेस और लेफ्ट के सहारे तेजस्वी यादव सत्ता का स्वाद नहीं चख पाएंगे, इसलिए नए साल की शुरुआत होते ही लालू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने साथ आने का ऑफर दे दिया। लालू यादव ने कहा था कि, ‘हमारा दरवाजा उनके लिए खुला है, उन्हें भी दरवाजा खोलकर रखना चाहिए। उन्हें शोभा नहीं देता वे हर बार भाग जाते हैं, लेकिन अगर नीतीश वापस आना चाहते हैं तो हम उन्हें माफ कर देंगे’। लालू यादव के ऑफर से पार्टी की हुई भारी किरकिरी को देखते हुए तेजस्वी यादव ने इससे किनारा कर लिया था, लेकिन लालू यादव के ऑफर से इतना तो तय हो गया कि आरजेडी आलाकमान को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत का अहसास जरुर हो गया।

चुनावी हार के बाद ही क्यों तेजस्वी उठा रहे हैं नीतीश की सेहत पर सवाल?

तेजस्वी यादव ने लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सेहत को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहा था, लेकिन बिहार की जनता ने इसे मानने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद तेजस्वी बार-बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर आरोप लगाते रहे हैं। इससे यही लगता है कि आरजेडी के पास नीतीश कुमार के खिलाफ कोई ठोस मुद्दा नहीं है। दरअसल तेजस्वी यादव को ये लगता है कि बेरोजगारी के मोर्चे पर नीतीश सरकार ने अच्छा काम किया है। वहीं सड़क और बिजली के क्षेत्र में बिहार में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। ऐसे में तेजस्वी यादव के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वे बार-बार मुख्यमंत्री के सेहत पर सवाल उठाकर जेडीयू को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।

‘नीतीश की ताकत है महिलाएं, महादलित और अतिपिछड़े’

बिहार जैसे राजनीतिक तौर से संवेदनशील राज्य में इतने लंबे समय तक चुनाव जीत कर सत्ता में बने रहना कोई आसान काम नहीं है। लालू यादव के पास माय समीकरण जैसा मजबूत सामाजिक गठजोड़ था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें सत्ता से बाहर जाना पड़ा। ऐसे में ये सवाल उठता है कि नीतीश कुमार के पास ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है कि वे दो दशक से बिहार की राजनीति की धुरी बने हुए हैं। दरअसल समय के साथ नीतीश कुमार ने महिलाओं,अति पिछड़ों और महादलितों का एक वोट बैंक तैयार कर लिया है। मुस्लिम वोटर भी नीतीश कुमार के प्रति उदार रवैया रखते हैं। वहीं बीजेपी, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के साथ गठबंधन से नीतीश बाबू को सवर्ण, पासवान और महादलितों का साथ मिल जाता है। अगर एनडीए के इस बड़े सामाजिक आधार को गौर से देखें तो ऐसा नहीं लगता है कि तेजस्वी अभी कहीं से भी नीतीश बाबू को चुनौती देने की स्थिति में हैं।

‘नीतीश बाबू की शक्ति देखकर बिखर रहा है इंडिया ब्लॉक’

नीतीश बाबू के नेतृत्व में एनडीए की राजनीतिक और सामाजिक आधार को देखकर इंडिया ब्लॉक में बिखराव आने लगा है। कांग्रेस ने लालू यादव के मनपसंद अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया है। वहीं कन्हैया कुमार ने बिहार में एक पदयात्रा भी निकाली है, सभी राजनीतिक पंडित ये जानते हैं कि कन्हैया को लालू परिवार बिल्कुल भी पसंद नहीं करता है। वहीं इससे पहले जो कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष होते थे वे लालू यादव के दरबार में हाजिरी लगाते थे लेकिन राजेश कुमार ने इस बार ऐसा कुछ नहीं किया। अभी लालू यादव ने जो इफ्तार पार्टी दी थी उसमें भी कांग्रेस के बड़े नेता और मुकेश सहनी नजर नहीं आए थे। वैसे कुछ दिनों पहले लालू यादव ने ममता बनर्जी को विपक्ष का बड़ा नेता बताकर राहुल गांधी के नेतृत्व को सीधी चुनौती दे डाली थी, तब से ही राहुल गांधी आरजेडी को सबक सिखाने में लगे हैं। वहीं महागठबंधन में चल रही आपसी खींचतान पर जेडीयू के एमएलसी नीरज कुमार ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि, ‘अब तो कोई भी लालू जी के ‘पाप कर्म’ में भागी बनने को तैयार नहीं। न कांग्रेस, न और कोई साथी। लालू जी के इफ्तार की शान गई, जब साथी भी कन्नी काट गए। कांग्रेस तो दूर खड़ी देखती रही। मतलब साफ कि न सहयोगी, न परिवार, कोई भी लालू जी के पाप कर्मों का भागीदार बनने को तैयार नहीं है’।

‘बिल्कुल स्वस्थ हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार’

प्रगति यात्रा और विधानसभा के सत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिल्कुल स्वस्थ नजर आए हैं। प्रगति यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगातार कई जिलों की यात्रा की थी और अधिकारियों से संवाद किया था। प्रगति यात्रा में हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणाओं को कैबिनेट से भी मंजूरी मिली। इससे पता चलता है कि मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारियों को नीतीश कुमार सफलतापूर्वक निभा रहे हैं। वहीं विधानसभा के सत्र में भी विपक्षी नेताओं के सवालों का नीतीश बाबू ने सधे अंदाज में दिया है। ऐसे में नीतीश बाबू के स्वास्थ्य को लेकर तेजस्वी यादव के तमाम दावे केवल सियासी रंग में रंगे नजर आते हैं।

साफ है कि राजनीतिक तौर पर आरजेडी और इंडिया गठबंधन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की काट नहीं तलाश पा रहे हैं। इसलिए तनाव में आकर विरोधी पक्ष के नेता मुख्यमंत्री पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं,लेकिन इस तरह की राजनीति को 2005 से लेकर अब तक बिहार की जनता ने सिरे से खारिज कर दिया है। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

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