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तिलकुट की रेसिपी चोरी ना हो जाए, इसलिए नहीं रखा 80 वर्षों में एक भी कारीगर

तिलकुट एक पारंपरिक मिठाई है. खासकर बिहार और झारखंड में लोकप्रिय है. इसे बनाने की विधि बहुत विशेष और पारंपरिक होती है. आज हम आपको गया तिलकुट की रेसिपी की ऐसी स्टोरी सुनाने जा रहे है जो आपको हैरान कर देगी. दरअसल, गया में तिलकुट की रेसिपी की चोरी ना हो जाए, यही कारण है कि वहां 80 वर्षों में एक भी कारीगर नहीं रखा गया.

रेसिपी की चोरी का डर

दरअसल, मोहन साव के परिवार की तिलकुट रेसिपी इतनी विशिष्ट और अलग है कि इस रेसिपी के बारे में न केवल व्यापारियों, बल्कि तिलकुट बनाने वाले कारीगर भी जानने के लिए उत्सुक हैं. यह रेसिपी राजा के दरबार से निकली हुई थी और फिर मोहन साव के परिवार तक सीमित हो गई. राजा के दरबार में यह तिलकुट विशेष रूप से उपयोग होता था. आज भी मोहन साव के परिवार के द्वारा बनाई जाने वाली तिलकुट के स्वाद की अलग पहचान है.

परिवार ने नहीं रखा एक भी कारीगर

इस विशेष रेसिपी को बनाए रखने के लिए मोहन साव के परिवार ने कोई भी बाहरी कारीगर नहीं रखा. तिलकुट बनाने की पूरी प्रक्रिया घर के सदस्य खुद मिलकर करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यदि किसी बाहरी कारीगर को यह विधि सिखाई गई तो वह कहीं और जाकर इसे बनाने लगेगा और उनकी पहचान और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है. इस तरह, तिलकुट के स्वाद और गुणवत्ता की चोरी से बचने के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया कि कोई बाहरी व्यक्ति काम पर न रखा जाए.

तिलकुट कम मीठा होता है

मोहन साव का तिलकुट न केवल स्वाद में अलग है, बल्कि बनाने की विशेष विधि भी अलग है. तिलकुट की लोइया में तिल भरा जाता है और फिर इसे मिट्टी की हांडी में भुना जाता है. इसके बाद तिल को कूटने की प्रक्रिया भी विशिष्ट होती है.मोहन साव का तिलकुट कम मीठा होता है जो इसे और भी खास बनाता है. इसके हल्के मीठेपन के कारण इसे अधिक पसंद किया जाता है. यही कारण है कि यह देश-विदेश में विशेष रूप से पसंद किया जाता है.

सुरक्षा के लिए कड़ी व्यवस्था

मोहन साव के परिवार ने अपनी तिलकुट बनाने की तकनीक और सामग्री के बारे में किसी को भी जानकारी न देने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रखी है. उनके परिवार के सदस्य इस प्रक्रिया को पारंपरिक तरीके से संभालते हैं. किसी भी बाहरी कारीगर को शामिल करने से परहेज करते हैं. यह परंपरा मोहन साव के दादा के समय से चली आ रही है. उनकी सोच यही है कि नाम और पहचान सबसे महत्वपूर्ण हैं न कि पैसे.

देश विदेश में हैं इसके दिवाने

गया जिला और टिकारी का तिलकुट अपने स्वाद और विशेषता के कारण अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गया है. इस तिलकुट की डिमांड दिसंबर से जनवरी तक चरम पर होती है. लोग इसे देश-विदेश तक भेजते हैं. खासकर, अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान, श्रीलंका, सऊदी अरब और बांग्लादेश जैसे देशों में इस तिलकुट की भारी मांग है.

जीआई टैग की ओर बढ़ता कदम

इसी लोकप्रियता के कारण व्यापारियों और संगठनों ने तिलकुट को जीआई टैग देने की मांग की है. जीआई टैग मिलने से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि तिलकुट की विशेषता और गुणवत्ता सिर्फ टिकारी और गया के क्षेत्र में ही बनी रहे. सरकारी स्तर पर इस दिशा में कार्यवाही भी की जा रही है और जीआई टैग मिलने की उम्मीद जताई जा रही है

कड़ी मेहनत और समय का निवेश

मुन्ना गुप्ता दुकानदार ने बताया कि मोहन साव के परिवार के लिए तिलकुट बनाना सिर्फ एक व्यवसाय नहीं बल्कि एक परंपरा है. उनका तिलकुट हर दिन ताजे और गरम मिलते हैं, लेकिन इसके लिए ग्राहकों को काफी इंतजार करना पड़ता है. इनकी तीन दुकानों से लगभग 80-100 किलो तिलकुट रोज बनते हैं, लेकिन स्टॉक नहीं रखा जाता, जिससे ग्राहक को ताजे तिलकुट का स्वाद मिलता है. इस प्रक्रिया में ग्राहकों को काफी घंटों तक इंतजार करना पड़ता है.

विशेष तिलकुट की मांग

शुभम गुप्ता दुकानदार ने बताया कि गया का तिलकुट न केवल स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है. बल्कि यह राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के बीच भी प्रसिद्ध है. पटना, दिल्ली और अन्य राज्यों के बड़े नेता और अधिकारी भी टिकारी के तिलकुट को विशेष रूप से मंगवाते हैं. इसकी विशेष महक और स्वाद ने इसे एक प्रतिष्ठित मिठाई बना दिया है.

“टिकारी के तिलकुट स्वाद के साथ उसके आकार भी अलग हैं, जिले में जितनी जगहों पर तिलकुट बनते हैं, वह छोटे पिलेट के आकार के होते हैं, जबकि टिकरी का तिलकुट कटोरे के आकार के होते हैं, यहां के तिलकुट के बीच का हिस्सा गहरा होता है, जो देखने में काफी सुंदर लगता है, इस में तिल गुड, चीनी का उपयोग होता है, लेकिन यहां के तिलकुट अधिक नहीं कुटा जाता है, जिसके कारण मुंह में जाते ही भुनी तिल का भी स्वाद लगता है.” – लाल जी प्रसाद अध्यक्ष, तिलकुट निर्माण विक्रेता संघ


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