एक सर्टिफिकेट पर दो नौकरी: जानकारी के मुताबिक, दोनों भाइयों ने एक ही मैट्रिक सर्टिफिकेट का इस्तेमाल करके बिहार पुलिस में नौकरी पाई थी. पहले भाई ने 1980 के दशक में इस प्रमाणपत्र के आधार पर भर्ती ली और कई सालों तक सेवा दी. बाद में, उसी सर्टिफिकेट का उपयोग करके दूसरे भाई ने भी पुलिस विभाग में नौकरी प्राप्त कर ली.
आर्थिक अपराध इकाई में मामला दर्ज: दोनों ने अलग-अलग समय पर काम किया, लेकिन जब दूसरे भाई ने पेंशन के लिए आवेदन किया, तो अधिकारियों ने पाया कि उसका जन्म तिथि और अन्य विवरण पहले भाई के दस्तावेजों से मेल खा रहे थे. इसके बाद जांच शुरू हुई और पूरा मामला सामने आया. अब आर्थिक अपराध इकाई में मामला दर्ज किया गया है और जांच करने में जुटी है.
41 साल से चल रहा था घोटाला: यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर यह धोखाधड़ी इतने लंबे समय तक कैसे चलता रहा. जांच में पता चला कि दस्तावेजों में हेराफेरी दोनों भाइयों ने एक ही मूल दस्तावेज का इस्तेमाल किया, लेकिन नाम और कुछ अन्य विवरण बदल दिए गए और दोनों ममेरे-फुफेरे भाई ने 41 साल तक नौकरी कर ली.
पेंशन की अर्जी पर हुआ खुलासा: अब जांच में दोनों के आधार नंबर, बैंक खाता नंबर और प्रथम योगदान स्थल में अंतर दिखा. वहीं शिवहर जिले से रिटायर हुए विक्रमा सिंह की प्रथम नियुक्ति रोहतास जिला बल में सिपाही पद पर हुई थी, लेकिन, जांच में शिवहर से रिटायर विक्रमा सिंह की पहचान कैमूर जिले के अटडीह गांव निवासी राजेंद्र सिंह के रूप में की गयी, जो कि दोनों रिश्ते में एक दूसरे के ममेरे फुफेरे भाई निकले. अब आर्थिक अपराध इकाई मामला दर्ज कर जांच में जुटी है.
एक नाम, एक पैन नंबर पर दो की नौकरी :दरअसल, मामला रोहतास जिले के चौडीहरा गांव के रहने वाले विक्रमा सिंह ने 1982 में कटिहार जीआरपी के साथ ही रोहतास जिला बल में भी सिपाही बहाली में सफलता हासिल की थी. दोनों जगह बहाली में पास किए थे. मगर उन्होंने कटिहार जीआरपी में योगदान किया और 2023 में गया से रिटायर हुए. वहीं, शिवहर से भी विक्रमा सिंह नामक दारोगा रिटायर हुए हैं, जिनके पिता का नाम, जन्म तिथि,स्थाई पता, पैन नंबर, ऊंचाई व छाती का माप आदि बिलकुल समान है.