चमत्कारी है विदिशा का महामाई मंदिर, यहां के पानी से ठीक होती है जानलेवा बीमारी

GridArt 20241007 225954445

विदिशा: देवी दुर्गा ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया. इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया. आश्विन महीने में शरद ऋतु के दिनों में शारदीय नवरात्र का पर्व मनाया जाता है. नवरात्रि के नौ दिनों में जहां भारतवर्ष में पूरे श्रद्धा भाव के साथ इस पर्व पर भक्ति, आराधना की जा रही है. वहीं आज हम आपको दर्शन कराते हैं विदिशा में स्थित महामाई माता मंदिर के।

बावड़ी का पानी पीने से दूर होता है चर्म रोग

विदिशा शहर के मोहनगिरी स्थित महामाई मंदिर और आषाढी माता के नाम से यह मंदिर जाना जाता है. शहर का यह आषाढी माता महामाई का प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास यह है कि जहां आज मंदिर है वहां चारों तरफ तालाब हुआ करता था और अब आबादी बढ़ने के बाद वह तालाब खत्म हो चुका है. आज भी यहां एक बावड़ी है, जिसका पानी पीने और नहाने से चर्म रोग भी दूर होते हैं।

मंदिर आकर भोजन बनाने की परंपरा

नवरात्रि के दिनों में भी यहां शहर भर के लोग देवी मां के दर्शन के लिए बड़ी श्रद्धा भाव से आते हैं. खास तौर पर यहां नवरात्रि के विशेष दिनों में श्रद्धालुओं का तांता रहता है. बरसों से एक परंपरा चली आ रही है यहां श्रद्धालु के आकर भोजन बनाने की और यहीं पर देवी मां को भोग लगाते हैं. इसके बाद ही पूरा परिवार भोजन प्रसादी ग्रहण करता है. यह परंपरा आज भी जीवित है. मंदिर में महामाई मां जगदंबा भवानी के रूप में शेर पर सवार हैं, उनके साथ वीर महाराज और राधा कृष्ण हैं. मान्यता है कि जिन लोगों को खांसी या बुखार आता है वह यहां आकर देवी मां से प्रार्थना करें तो वह ठीक हो जाता है।

 

महामारी से पड़ा महामाई मंदिर का नाम

एडवोकेट गोविंद देवलिया इतिहासकार बताते हैं कि, ”इस मंदिर का नाम महामाई मंदिर उस समय से पड़ा जब 1900 के लगभग देश में महामारी फैली. महामारी फैलने से हाहाकार मच गया और यहां दुर्गा मां की एक छोटी सी प्रतिमा के समक्ष आकर श्रद्धालु मन्नत मांगते थे. देवी की कृपा से सब ठीक हो जाते थे. तभी से महामाई के नाम से आज तक इस मंदिर का नाम महामाई माता के नाम से पड़ गया।

1973 में लोगों ने चंदा इकठ्ठा कर बनवाया मंदिर

श्रद्धालु राजकुमार प्रजापति ने बताया कि, ”मंदिर तो प्राचीन है, वर्ष 1973 में लोगों ने अपनी श्रद्धा से राशि एकत्रित कर इस मंदिर को एक चबूतरे के रूप में बनाया था, जो आज विशालकाय हो चुका है.” संजू प्रजापति बताते हैं कि, ”वह इस मंदिर का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं, भक्त जगत जननी से भी मुराद मांगते हैं. मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

Sumit ZaaDav: Hi, myself Sumit ZaaDav from vob. I love updating Web news, creating news reels and video. I have four years experience of digital media.