आमतौर पर सियासत का हिस्सा बनने के लिए एक अच्छा वक्ता होना जरूरी है। मगर अब राजनीति में एंट्री की परिभाषा बदल चुकी है। सियासत में करियर बनाने के लिए आपको 3-4 लाख रुपए महीना खर्च करना होगा। यह हम नहीं कह रहे बल्कि एक रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है। रिसर्च के अनुसार राजनीति में करियर बनाने के लिए अब एक अच्छे वक्ता से ज्यादा अमीर होना जरूरी है।
रिसर्च में खुलासा
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए बड़ी संख्या में पैसों की जरूरत होती है। सभी को लगता है कि राजनीति में पैसे सिर्फ चुनावी मौसम में खर्च होते हैं। मगर इस रिसर्च ने इन धारणाओं को भी सिरे से खारिज कर दिया है। इसके अनुसार किसी निर्वाचन क्षेत्र में उपस्थिति बनाए रखने के लिए करोड़ों रुपयों की आवश्यकता होती है।
कैसे पूरी हुई रिसर्च?
बता दें कि वेस्टमिनिस्टर फॉर डेमोक्रेसी (UK) के लिए ORF के निरंजन साहू और अंबर कुमार घोष ने यह रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है। भारत में राजनीति की लागत के नाम से छपी यह रिपोर्ट चौंकाने वाले आंकड़े पेश करती है। इस रिसर्च में उत्तर से लेकर दक्षिण, मध्य और पूर्व भारत तक के राजनीति खर्च का आंकड़ा शामिल है। शोधकर्ताओं ने फील्ड वर्क के अलावा उम्मीदवारों, पार्टी अधिकारियों और चुनावी अधिकारियों से बातचीत के आधार पर रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है।
उम्मीदवारी के लिए देने पड़ते हैं करोड़ो रुपए
ORF की इस रिपोर्ट के अनुसार चुनाव के ऐलान से कई महीने पहले ही उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों पर पैसे खर्च करना शुरू कर देते हैं। चुनाव प्रचार से लेकर तमाम खर्च उम्मीदवार अपनी जेब से करते हैं। इसके लिए उन्हें पार्टी से न के बराबर पैसा मिलता है। यही नहीं, कई बार पार्टी का उम्मीदवार बनने के लिए भी उन्हें अच्छी-खासी रकम अदा करनी पड़ती है। खासकर क्षेत्रिय दलों के कई उम्मीदवारों को अपना नामांकन सुरक्षित रखने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। दक्षिण भारत के कुछ उम्मीदवारों ने उम्मीदवारी सेफ रखने के लिए 3-4 करोड़ रुपए देने की बात कबूली है।
100 करोड़ रुपए तक होता है खर्च
रिसर्च में खुलासा किया गया है कि नामांकन दाखिल होने के बाद उम्मीदवारों को और भी ज्यादा खर्च का सामना करना पड़ता है। लोकसभा चुनाव अभियान के लिए आधारभूत लागत 5-10 करोड़ रुपए है। वहीं हाई-प्रोफाइल सीटों पर खर्च अधिक होता है। तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में उम्मीदवारों को कथित तौर पर 100 करोड़ से ज्यादा खर्च करना पड़ता है।