Voice Of Bihar

खबर वही जो है सही

“हमने कहा- हम हिंदू हैं… और आतंकी ने दाग दी गोली”, पहलगाम हमले में पत्नी की आंखों के सामने उजड़ा सुहाग

ByLuv Kush

अप्रैल 24, 2025
IMG 3706

श्रीनगर | विशेष रिपोर्ट — जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में बीते मंगलवार को हुआ आतंकी हमला न केवल 26 निर्दोष जानों को लील गया, बल्कि कई परिवारों को हमेशा के लिए तोड़ गया। इस हमले का सबसे मार्मिक चेहरा उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी शुभम द्विवेदी की कहानी है, जिन्हें उनकी पत्नी ऐशान्या के सामने आतंकियों ने सिर्फ इसलिए गोली मार दी क्योंकि उन्होंने अपना धर्म “हिंदू” बताया।

“हमने कहा हिंदू हैं… और गोली चल गई”

हमले के बाद पहली बार मीडिया के सामने आईं ऐशान्या ने बताया कि वे बैसरन में टूरिस्ट ग्रुप के साथ थे। सब कुछ सामान्य था, लोग हंस-बोल रहे थे। तभी कुछ आतंकी वहां पहुंचे और बंदूकें तान दीं। “उन्होंने पूछा, हिंदू हो या मुसलमान? हमने कहा, हिंदू… और फिर उन्होंने शुभम को गोली मार दी,” ऐशान्या ने रोते हुए बताया। “मैं चीखती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन कुछ नहीं कर सकी।”

शादी की तस्वीरें अब यादें नहीं, दर्द बन गईं

ऐशान्या और शुभम की शादी को कुछ ही समय हुआ था। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं उनकी शादी की तस्वीरें अब उस दर्द का प्रतीक बन गई हैं जिसे शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं। सिर पर सेहरा बांधे शुभम की तस्वीरें अब सिर्फ ऐशान्या के आंसुओं की गवाही हैं।

“मोदी को जाकर बताओ, इसलिए तुम्हें छोड़ा”: आतंकी की धमकी

शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने बताया कि उनका बेटा, बहू और साली बैसरन में घूमने गए थे। आतंकी रेस्टोरेंट के पास ही घात लगाए बैठे थे। उन्होंने बताया कि जब ऐशान्या ने खुद को भी मारने की गुहार लगाई, तो आतंकियों ने कहा, “नहीं, तुम्हें जिंदा छोड़ रहे हैं, ताकि तुम जाकर मोदी को बता सको कि हमने क्या किया है।”

परिजनों ने की गृह मंत्री से मुलाकात, उठाई न्याय की मांग

हमले के बाद शुभम के परिवार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से श्रीनगर में मुलाकात की और इस नृशंस हत्याकांड के खिलाफ न्याय की मांग की। उनका कहना है कि यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे देश की अस्मिता और धार्मिक सहिष्णुता पर हमला है।

हम क्यों नहीं भूल सकते यह हमला?

यह आतंकी हमला केवल सुरक्षा व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान के आधार पर किए गए कत्लेआम की वीभत्स मिसाल है। यह देश को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आज भी किसी की जान उसके धर्म से तय होगी?

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *