राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और लालू के बेहद करीबी पूर्व मंत्री आलोक मेहता के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने छापा मारा है। केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय कि यह कार्रवाई वैशाली कोऑपरेटिव बैंक से करोड़ो के लेनदेन प्रकरण में की गई है। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय आलोक मेहता से लगातार सवाल कर रही है और उनको इसका जवाब तक नहीं सूझ रहा है। इस ठंड के मौसम में उनके पसीने छूट रहे हैं। फर्स्ट बिहार के पास इसकी तस्वीर भी मौजूद हैं।
दरअसल, वैशाली शहरी विकास कोऑपरेटिव बैंक में करीब 85 करोड़ के घपले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेता और लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के करीबी आलोक मेहता के घर समेत चार राज्यों में 19 ठिकानों पर शुक्रवार की सुबह-सुबह छापा मार रही है। इसके बाद अब फर्स्ट बिहार के पास वह ख़ास तस्वीर मौजूद हैं जिसमें ED के अधिकारी आलोक मेहता को सामने बैठाकर उनसे सवाल कर रहे हैं और महेता को इसका माकूल जबाब नहीं मिल रहा है, ऐसे में इस ठंड के मौसम में भी पसीने छुट रहे हैं।
जानकारी हो कि, वैशाली शहरी विकास कोऑपरेटिव बैंक की स्थापना आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता ने लगभग 37 साल पहले की थी। तुलसीदास मेहता कई बार विधायक और राज्य सरकार में मंत्री भी रहे थे। उनकी राजनीतिक रसूख के कारण बैंक बना और इससे हजारों लोग जुड़ भी गए। हालांकि, तुलसी का 2019 में निधन हो गया था। उनके बाद आलोक मेहता ने बैंक की बागडोर संभाली थी। बाद में घपले की बात खुलने पर वो बैंक से हट गए। अब उनके भतीजे संजीव कुमार बैंक के चेयरमैन हैं।
बैंक की साइट पर संजीव के मैसेज में 2021-22 के एजीएम में पेश रिपोर्ट है। इसमें पिछले पांच वित्तीय वर्ष में बैंक का शुद्भ मुनाफा चार साल 1 करोड़ से ऊपर दिखाया गया है। वर्तमान बैंक के पास लगभग 24 हजार ग्राहक हैं। बैंक पर आरोप है कि लिच्छवी कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड और महुआ कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज को लगभग 60 करोड़ का लोन दबा लिया। ये दोनों कंपनियां मेहता के परिवार से जुड़ी हैं और इन्हें कर्ज देने में नियमों का पालन नहीं किया गया। इनके अलावा लगभग 30 करोड़ रुपए फर्जी पहचान पत्र और फर्जी एलआईसी पेपर के आधार पर निकालने का आरोप भी लगा है। इन सब मामलों को लेकर तीन मुकदमे दर्ज हुए थे और उसकी जांच के आधार पर ही ईडी अब इस मामले में घुसी है।
गौरतलब हो कि, 1996 में आरबीआई ने वैशाली शहरी विकास कोऑपरेटिव बैंक को लाइसेंस दिया था। उस समय आलोक मेहता ही बैंक के चेयरमैन थे। लेकिन, 2012 में आलोक मेहता ने चेयरमैन का पद छोड़ दिया और तुलसी दास मेहता फिर से अध्यक्ष बने थे। तीन साल बाद बैंक के कारोबार में कुछ गड़बड़ी की शिकायत पर 2015 में तुलसी दास ने पद छोड़ दिया और फिर संजीव कुमार चेयरमैन बने। सूत्रों का कहना है कि उस समय भी बैंक का कारोबार आरबीआई ने बंद करवा दिया था।