क्या है खरमास लगने का कारण, जिसमें नहीं होती शादियां और शुभ कार्य; गधों से है कथा का कनेक्शन
देवोत्थान एकादशी से शुरू हुए विवाह मुहूर्त और मांगलिक कार्य 15 दिसंबर तक जारी रहेंगे। पंचांग के अनुसार 16 दिसंबर को सूर्यदेव गुरु की धनु राशि में प्रवेश करेंगे और 14 जनवरी तक इसी राशि में गतिशील रहेंगे। सूर्य के धनु राशि काल को खरमास कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नवीन कार्य वर्जित माने गए हैं। इसलिए 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक सभी मांगलिक कार्यों पर रोक रहेगी। 15 जनवरी से मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होगा। इसके चलते अब छह दिन और शहनाई बजेगी। फिर एक माह बाद ही मंडप सजेगा।
खरमास के पीछे की पौराणिक कथा
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सूर्य सात घोड़े के रथ से इस सृष्टि की यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने व धीमा होने का अधिकार नहीं है, लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सात घोड़े हेमंत ऋतु में थककर तालाब के पास रुकते हैं, ताकि पानी पी सकें।
सूर्य को अपना दायित्व याद आता है कि वह रुक नहीं सकते चाहे घोड़ा भले ही रुक जाए। यात्रा को जारी करने के लिए व सृष्टि पर संकट न आ जाए, इसलिए भगवान भास्कर तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में जोड़कर यात्रा जारी रखते हैं।
गधे अपनी मंद गति से पूरे मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते हैं। इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो जाता है। इस महीने धूप भी कम दिखाई देती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव फिर अपने सात घोड़ों को रथ में लगाकर यात्रा आरंभ करते हैं और मांगलिक कार्यक्रम प्रारंभ हो जाते हैं।
नारायण का महीना है खरमास
देवगुरु की दिव्यता से संपन्न यह महीना आध्यात्मिक रूप से स्वयं को संपन्न व उन्नत बनाता है। इसे ऋषियों ने खरमास इसलिए नाम दिया, क्योंकि इस कालखंड में प्राकृतिक ऊर्जा से इंद्रिय निग्रह में सहयोग मिलता है। चित्त सांसारिक बैरागी की ओर सहज उन्मुख होता है। इसी कारण यह महीना धैर्य, अहिंसा और भक्ति के लिए मान जाना जाता है, इसलिए इसे नारायण का महीना कहते हैं। खरमास में तीर्थ यात्रा, कथा श्रवण, कीर्तन, भजन, जप का महत्व अत्यधिक होता है।
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