जब एक वेश्या से हार गए स्वामी विवेकानंद, आंखों से बहने लगे आंसू; पढ़े इस अद्भुत घटना की कहानी

GridArt 20240112 132913916

‘उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’, ‘यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं।’ गुलाम भारत में ये बातें स्वामी विवेकानंद ने अपने प्रवचनों में कही थी। उनकी इन बातों पर देश के लाखों युवा फिदा हो गए थे। बाद में तो स्वामी की बातों का अमेरिका तक कायल हो गया।  12 जनवरी का दिन स्वामी विवेकानंद के नाम पर समर्पित है और इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बेहद कम उम्र में देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले और अपने ज्ञान का पूरी दुनिया में लोहा मनवाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट के एक कायस्थ परिवार में विश्वनाथ दत्त के घर में जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) को हिंदू धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था।

वेश्या के मोहल्ले में था विवेकानंद का घर

विवेकानंद हिन्दुस्तान के एक ऐसे संन्यासी रहे हैं, जिनके संदेश आज भी लोगों को उनका अनुसरण करने को मजबूर कर देते हैं और उनके अनुयायी देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में नजर आते हैं और एक ऐसा संन्यासी जिनका एक वक्तव्य पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी होता था। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी एक घटना शायद आप नहीं जानते होंगे। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया का दिल जीतने वाले वही स्वामी विवेकानंद एक बार एक वेश्या के आगे हार गए थे। एक वाकया यह भी है कि स्वामी विवेकानंद का घर एक वेश्या मोहल्ले में था जिसके कारण विवेकानंद दो मील का चक्कर लगाकर घर पहुंचते थे।

पढ़ें, स्वामीजी के जीवन से जुड़ा अद्भुत वाकया

बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका जाने से पहले जयपुर के महाराजा के यहां मेहमान बने थे। कुछ दिन वहां रहने के बाद जब स्वामीजी के विदा लेने का समय आया तो राजा ने उनके लिए एक स्वागत समारोह रखा। उस समारोह के लिए उसने बनारस से एक प्रसिद्ध वेश्या को बुलाया। जैसे ही वेश्या विवेकानंदजी के कमरे के बाहर पहुंची उन्होंने अपने आपको कमरे में बंद कर लिया।

इतने में वेश्या ने गाना गाना शुरू किया, फिर उसने एक संन्यासी गीत गाया। गीत का अर्थ था- ‘मुझे मालूम है कि मैं तुम्‍हारे योग्‍य नहीं, तो भी तुम तो जरा ज्‍यादा करूणामय हो सकते थे। मैं राह की धूल सही, यह मालूम मुझे। लेकिन तुम्‍हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्‍मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं कुछ नहीं हूं। मैं अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्‍मा हो। तो क्‍यों मुझसे भयभीत हो तुम?’

वेश्या के भजन से विवेकानंद की आंखों में आए आंसू

वेश्या जब भजन गा रही थी तो उस समय उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। विवेकानंद ने अपने कमरे इस गीत को सुना और उसकी स्थिति का अनुभव किया। उस वेश्या के भजन सुनकर स्वामी विवेकानंद बाहर से अंदर आ गए। उस समय वह एक वेश्या से हार गए थे। उन्होंने वेश्या के पास जाकर उससे कहा कि अब तक जो उनके मन में डर था वह उनके मन में बसी वासना का डर था जिसे उन्होंने अपने मन से बहार निकाल दिया है और इसके लिए प्रेरणा उन्हें उस वेश्या से ही मिली है। उन्होंने उस वेश्या को पवित्र आत्मा कहा, जिसने उन्हें एक नया ज्ञान दिया।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.