‘बागी’ विधायकों का कब होगा इलाज? सभी दलों ने अपनायी सॉफ्ट नीति, कार्रवाई नहीं करने के पीछे इस बात का डर

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12 फरवरी को बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया लेकिन उस दौरान आरजेडी के तीन विधायक बागी हो गए. तीनों सत्ता पक्ष के साथ जाकर बैठ गए, जिस वजह से ‘खेला’ होते-होते रह गया. हालांकि खेल सत्तारूढ़ गठबंधन में भी देखने को मिला, क्योंकि इस दौरान बीजेपी और जेडीयू के 5 विधायक सदन से गैरमौजूद रहे. इसके बावजूद अभी तक इन विधायकों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है. राजनीतिक विशेषज्ञ इसका बड़ा कारण बहुमत का आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं होना और लोकसभा चुनाव सामने होना बता रहे हैं।

बागियों का कब होगा इलाज?: बीजेपी और जेडीयू विधायकों को लेकर नीतीश सरकार की ओर से सीधा कोई एक्शन तो नहीं लिया जा रहा है लेकिन कई अन्य तरीके से एक्शन जरूर हो रहे हैं. जेडीयू विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल और बेटे को अवैध हथियार के मामले में गिरफ्तार किया गया है. वहीं, बीजेपी विधायक मिश्रीलाल यादव के बेटे को थाना प्रभारी को धमकी देने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है।

जेडीयू में सब कुछ हो गया सेट: परबत्ता से जेडीयू विधायक डॉक्टर संजीव पर जनता दल यूनाइटेड के ही एक विधायक की तरफ से प्राथमिकी दर्ज कराई गई है लेकिन इन बागियों के खिलाफ सीधा एक्शन लेने से जेडीयू और बीजेपी नेतृत्व बचता दिख रहा है. यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने बागी विधायकों को बुलाकर एक-एक कर बातचीत की है और उन्हें समझने की भी कोशिश की है. सीएम ने संजीव, बीमा भारती, मनोज यादव और सुदर्शन से मुलाकात की है. जेडीयू विधान पार्षद संजय गांधी तो यहां तक कहते हैं कि पार्टी में कोई बागी ही नहीं है।

“मेरी नाराजगी अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने के बाद दूर हो चुकी है. उनके ऊपर एफआईआर जो हुई, उसका कोई मतलब नहीं है. इससे पार्टी की ही बदनामी हो रही है, इसको लेकर भी सीएम से बातचीत की है.”- डॉक्टर संजीव कुमार, विधायक, जेडीयू

आरजेडी के तीन विधायक बागी: वहीं, विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और नीतीश सरकार के विश्वास प्रस्ताव के दौरान आरजेडी के तीन विधायक चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रह्लाद यादव ने पाला बदल लिया था, जिस वजह से खेला नहीं हो पाया था. इसके बावजूद अभी तक आरजेडी की तरफ से भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

लोकतंत्र को लोभतंत्र में बदल दिया गया है. हमारे तीन विधायकों को जोर-जबरदस्ती सरकार ने अपनी तरफ बैठा लिया. बिहार की जनता इसे देख रही है और समय पर जो भी एक्शन लेना होगा, जरूर लिया जाएगा.”- एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी

क्या कहते हैं जानकार?: वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है कि यह विचित्र स्थिति है. जेडीयू-बीजेपी और आरजेडी के विधायकों ने बागी तेवर अपनाया था, इसके बाद भी दलों की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई. आरजेडी के विधायकों ने तो एनडीए के पक्ष में वोटिंग भी की थी. एक्शन नहीं लेने के पीछे की सबसे बड़ी वजह लोकसभा चुनाव है. चुनाव से पहले कोई भी दल अपने विधायकों पर कार्रवाई कर रिस्क नहीं लेना नहीं चाहता है।

“लोकसभा चुनाव से पहले कोई भी दल अपने विधायकों पर कार्रवाई कर रिस्क लेना नहीं चाहता है. साथ ही विधानसभा में एनडीए को बहुत ज्यादा बहुमत नहीं है, इसलिए जदयू-भाजपा नेतृत्व भी कार्रवाई करने से बच रहा है. आरजेडी भी सबसे बड़ी पार्टी है और उसे खोना नहीं चाहती है. शायद इसलिए बागियों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है.”- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

क्या है विधानसभा का गणित?: बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास 79 विधायक हैं, तीन बागी विधायकों पर कार्रवाई होगी तो 76 विधायक हो जाएंगे और दूसरे नंबर की पार्टी हो जाएगी. वहीं बीजेपी के पास 78 विधायक हैं. बीजेपी भी यदि अपने बागी विधायकों पर कार्रवाई की तो उसके विधायकों की संख्या घटकर 75 हो जाएगी. जेडीयू के भी कम से कम दो विधायकों पर यदि कार्रवाई हुई तो उसकी संख्या घटकर 43 पहुंच जाएगी. यही कारण है कि तीनों दल एक्शन से बच रहे हैं।

फ्लोर टेस्ट के दौरान की थी बगावत: जेडीयू विधानमंडल दल की बैठक में 7 विधायक नहीं पहुंचे थे, वहीं अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी बीमा भारती और दिलीप राय नहीं आए थे. बीजेपी की भागीरथी देवी, रश्मि वर्मा और मिश्रीलाल यादव भी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन में मौजूद नहीं थे. वैसे ऐसे सरकार के विश्वास मत के दौरान दिलीप राय को छोड़कर सभी बागी पहुंच गए थे. आरजेडी के तीन विधायकों के पाला बदलने के कारण नीतश सरकार ने विश्वास मत प्राप्त कर लिया और अवध बिहारी चौधरी को भी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी से हटा दिया था।

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