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जहां दी जाती है अनोखी रक्तविहीन पशु बलि, कैमूर के मुंडेश्वरी मंदिर की महिमा है अपरंपार

नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के मंदिरों में पशु बलि की प्रथा है, लेकिन बिहार में मां का एक ऐसा मंदिर भी है जहां पशु बलि दी तो जाती है लेकिन बिना खून बहाए. जी हां, मां की 51 शक्तिपीठों में शामिल बिहार के कैमूर जिले में स्थित इस अनोखी पशुबलि को देखने के लिए देश-विदेश से मां के भक्त आते हैं.

600 ईसा पूर्व से विराजमान है मंदिरः कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी का ये मंदिर 600 ईसा पूर्व से ही यहां विराजमान है.इसके पहले का मंदिर का इतिहास किसी को नहीं पता है कि यह मंदिर कब से है ? इस तरह मां मुंडेश्वरी का मंदिर देश के अति प्राचीन मंदिरों में से एक है.

कैसे पहुंचे मां मुंडेश्वरी स्थान ?: वैसे तो मां मुंडेश्वरी के दरबार में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन शारदीय नवरात्र में तो भारी भीड़ उमड़ती है. मां के दरबार में बिहार के अलावा कई दूसरे प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं.यहां आने के लिए ट्रेन के रास्ते भभुआ रोड स्टेशन से उतरकर ऑटो से आना होता है. वहीं हवाई रास्ते से आने के लिए वाराणसी या पटना मुंडेश्वरी धाम पहुंचा जा सकता है.

526 सीढ़ियों की है चढ़ाईः मां मुंडेश्वरी के मंदिर तक पहुंचने के लिए 526 सीढ़ियों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. हालांकि दूसरा रास्ता सड़क वाला भी है, जिस पर फोर व्हीलर या टू व्हीलर से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. वैसे अधिकांश लोग सीढ़ियों के रास्ते ही मां के दरबार में पहुंचना पसंद करते हैं.

अष्टकोणीय है मां का मंदिरः मां का ये मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है, जिसके दो मुख्य द्वार हैं. एक द्वार से लोग दर्शन के लिए अंदर जाते हैं तो वहीं दूसरे द्वार से लोग बाहर आते हैं.लोगों का मानना है कि मां के दरबार में मांगी गयी हर मन्नत पूरी होती है. मन्नत पूरी होने के बाद लोग श्रद्धानुसार नारियल, चुनरी चढ़ाते हैं.

मां ने किया था मुंड का वधः पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ने मुंड नाम के राक्षस का वध किया था इसीलिए इन्हें मां मुंडेश्वरी का नाम मिला.मंदिर में एक शिवलिंग है भी जिन्हें महामंडलेश्वर के नाम से जाना जाता है. चारों तरफ मुख वाला ये शिवलिंग दिन में चार बार अपना रंग बदलता है जिसका भी रहस्य अभी तक किसी को नहीं मालूम है.

“ये देश का अति प्राचीन मंदिर है. इसके निर्माणकाल का सही समय पता नहीं है. 635 ईसा पूर्व ये पाया गया.ये पौरा पहाड़ी पर स्थित है.”-उमेश कुमार मिश्रा, मुण्डेश्वरी मंदिर के वरिष्ठ पुजारी

अनोखी रक्तहीन पशु बलि के लिए प्रसिद्धः मां मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे विख्यात बात तो ये है कि यहां बिना खून बहाए बकरों की बलि दी जाती है.बकरे को मां मुण्डेश्वरी के चरणों में लिटाकर पुजारी ने अक्षत से प्रहार करते हैं, जिसके बाद बकरा पूरी तरह मूर्छित हो जाता है. दुबारा अक्षत के प्रहार से बकरा उठ खड़ा होता है, जिसके बाद बकरा श्रद्धालु को सौंप दिया जाता है.

पहले दिन उमड़ा श्रद्धा का सैलाबः शारदीय नवरात्र के पहले दिन एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने मां का दर्शन किया. नवरात्र के नौ दिनों तक मां के दरबार में भक्तों का ऐसा ही तांता लगा रहता है. हालांकि सप्तमी से लेकर महानवमी के दौरान भीड़ और बढ़ जाती है. बिहार के कई जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में मां भक्त मां मुंडेश्वरी के दर्शन के लिए आते हैं. भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने यहां सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं.

“मंदिर के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गये हैं ताकि सामाजिक या उदंडी लोगों पर नजर रखी जा सके. दर्शन करने आए श्रद्धालुओं को किसी तरह की तकलीफ न हो इसको लेकर पुलिस-प्रशासन मुस्तैद है.”-उदय कुमार,थानाध्यक्ष, भगवानपुर


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