महाभारत सिर्फ एक युद्ध की कहानी नहीं है या यह सिर्फ कौरवों और पांडवों की कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन, धर्म, कर्म, प्रेम, द्वेष, मोह और मोक्ष जैसी कई जटिल भावनाओं और विषयों का एक विशाल संग्रह है। इसमें कई ऐसी विचित्र और रोचक कहानियां हैं जो हमें सदैव आश्चर्यचकित करती रहती हैं। ऐसी ही एक कहानी अर्जुन और नागकन्या उलूपी की है और उससे उत्पन्न पुत्र इरावन की है, जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं?
अर्जुन और नागकन्या उलूपी की प्रेम कहानी
अर्जुन ने कुल 4 शादियां की। द्रौपदी के अलावा चित्रांगदा, सुभद्रा और उलूपी से भी विवाह किया। उलूपी, अर्जुन की दूसरे नंबर की पत्नी थीं। वह नाग राजा कौरव्य की पुत्री थीं। इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद अर्जुन मैत्री अभियान पर निकले। इस दौरान वे नाग लोक पहुंचे। वहां उनकी नागकन्या उलूपी से मुलाकात हुई। उलूपी का आधा शरीर नाग का और आधा इंसान का था। वह अर्जुन को देखते ही मंत्रमुग्ध हो गईं और उन्हें पाताल लोक ले गईं और विवाह का प्रस्ताव रखा। अर्जुन ने उलूपी का अनुरोध स्वीकार कर लिया। दोनों करीब 1 वर्ष तक साथ रहे। भीष्म पर्व के अनुसार, गरुड़ ने नागराज की पुत्री उलूपी के मनोनीत पति का वध कर दिया था। इसके बाद नाग राजा कौरव्य ने अपनी बेटी का हाथ अर्जुन को सौंपा।
ऐसे हुआ इरावन का जन्म
विष्णु पुराण के मुताबिक, अर्जुन और उलूपी की शादी से दोनों को एक पुत्र हुआ। जिसका नाम इरावन रखा गया। उन्होंने अपना ज्यादा समय माता उलूपी के साथ नागलोक में बिताया। वहीं युद्ध कौशल सीखा। इरावन अपने पिता अर्जुन की ही तरह बहुत कुशल धनुर्धर निकले। उन्हें तमाम मायावी अस्त्र-शस्त्रों पर सिद्धि हासिल की। साथ ही उसने तमाम शास्त्रों और पुराणों का भी अध्ययन किया।
अर्जुन के लिए इरावन ने दी अपनी बलि
महाभारत के युद्ध पहले पांडवों ने अपने विजय के लिए एक खास अनुष्ठान आयोजित किया और मां काली की पूजा की। इस पूजा में एक नरबलि दी जानी थी। पांडव और भगवान कृष्ण दुविधा और चिंता में थे कि आखिर बलि कौन देगा? कहते हैं, ऐसी विषम परिस्थिति में अर्जुन के पुत्र इरावन खुद आगे आए और अपनी बलि देने को तैयार हो गए। लेकिन उसने शर्त रखी कि बलि से पहले उनकी इच्छा विवाह करने की है, क्योंकि वह अविवाहित नहीं मरना चाहता था।
इरावन के विवाह की अड़चनें
अर्जुन पुत्र इरावन के बारे में ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि इरावन युद्ध में वीरगति को प्राप्त करेंगे। इरावन ने अपने पिता अर्जुन की जीत सुनिश्चित करने के लिए स्वयं बलि देने का निर्णय लिया। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि इरावन का विवाह होने के बाद उनकी मृत्यु हो जानी। इस कारण से कोई भी कन्या इरावन से विवाह करने को तैयार नहीं थी।
भगवान श्रीकृष्ण का मोहिनी रूप में पत्नी-धर्म
इस कठिन परिस्थिति में भगवान कृष्ण मोहिनी रूप धारण कर स्त्री के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने इरावन से विवाह किया। विवाह के बाद, श्रीकृष्ण ने एक पत्नी की तरह इरावन को विदा किया। अगले दिन अरावन का सिर काट दिया गया। कृष्ण-रूप मोहिनी उसके लिए ऐसे रोई और शोक मनाया जैसे कोई पत्नी अपने पति के लिए करती है। श्रीकृष्ण के इस कृत्य से इरावन को शांति मिली। इस प्रकार इरावन ने अपनी बलि देकर महाभारत युद्ध में अपने पिता अर्जुन और पांडवों की जीत सुनिश्चित की।
किन्नर इरावन बनाते हैं पति
कहा जाता है कि भारत में हिन्दू धर्म मानने वाले किन्नर इरावन की पूजा करते हैं। किंवदंतियों के अनुसार एक दिन के लिए उनकी मूर्ति को साक्षात इरावन मानते हुए उससे विवाह करते हैं। एक दिन बाद विधवा की तरह विलाप भी होता है। यह रस्म किन्नरों में बेहद पवित्र मानी जाती हैं।