पूर्वजों की मुक्ति के लिए कौओं को ही क्यों खिलाते हैं भोजन? गरुड़ पुराण में है इसका रहस्य

Pitra paksh

हिंदू धर्म में अपने पितरों की मुक्ति के लिए पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। इस साल पितृ पक्ष मंगलवार (17 सितंबर) से शुरू हो गया है। इस दौरान अगले 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण के जरिए पितरों को तृप्त किया जाएगा। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को तर्पण देने के लिए श्राद्ध के दौरान कौओं को खाना खिलाते हैं। आइए जानते हैं श्राद्ध के दौरान कौओं को भोजन कराने का पौराणिक महत्व क्या है।

ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म का भोजन कौओं को खिलाने से पितरों को मुक्ति और शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने वंशज को आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि पितरों को मुक्ति और संतुष्टि न मिलने के चलते उनके वंशज की कुंडली में पितृ दोष होता है। ऐसे में पितृपक्ष का महत्व काफी बढ़ जाता है। लेकिन, सवाल यह है कि पितृ पक्ष में कौओं को ही भोजन क्यों खिलाया जाता है?

इसका जवाब गरुड़ पुराण में मिलता है, जहां बताया गया है कि कौओं को यमराज का आशीर्वाद प्राप्त है। यमराज ने कौवे को आशीर्वाद दिया था कि उन्हें दिया गया भोजन पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करेगा। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान एक तरफ जहां ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तो वहीं कौओं को भी भोजन कराने का बहुत महत्व होता है। कहा जाता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज कौओं के रूप में हमारे पास आ सकते हैं।

कथाओं के अनुसार कौओं का संबंध भगवान राम से भी माना जाता है। बताया जाता है कि एक बार कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी थी। इससे माता सीता के पैर में घाव हो गया। माता सीता को पीड़ा में देख भगवान राम ने क्रोध में कौए पर बाण चला दिया। कौए इसके बाद अपनी जान बचाने के लिए अनेक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचा लेकिन किसी ने उसको शरण देने से इंकार कर दिया। इसके बाद कौए ने माता सीता और भगवान श्रीराम से क्षमा याचना की।

बताया जाता है कि यह कौआ इंद्रदेव का पुत्र जयंत था और भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने आया था। कौए को अपनी गलती का एहसास हो चुका था और भगवान राम ने भी उसको क्षमा कर दिया। इतना ही नहीं, भगवान राम ने उसको आशीर्वाद दिया कि तुमको कराया गया भोजन पितरों को संतुष्ट करेगा। तभी से पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

ज्ञात हो कि, भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों की शांति सेवा करते हैं। इस बार पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होगा।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.
Recent Posts