संडे यानी फन डे, बच्चों के लिए मस्ती का दिन और नौकरीपेशा इंसानों के लिए छुट्टी यानि का आराम का दिन. सप्ताह भर काम करके लोग थक जाते है और रविवार का बेसब्री से इंतजार करते है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर रविवार को ही छुट्टी क्यों होती है? पूरी दुनिया में अधिकांश लोगों के लिए वीक ऑफ का दिन रविवार ही होता है.
वहीं स्कूलों-कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में भी छुट्टी रविवार के दिन ही होती है, लेकिन आखिर रविवार को ही छुट्टी क्यों? पढ़ें ‘संडे ऑफ’ की पूरी कहानी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, भारतीय सरकार ने इस छुट्टी को दिलाने वाली शख्सियत के नाम पर डाक टिकट जारी कर उनका सम्मान किया था.
सालों चला लंबा संघर्ष
भारत में रविवार की छुट्टी के पीछे संघर्ष की कहानी है. भारत में माना जाने वाला कैलेंडर अंग्रेजों की देन है. यही वजह है कि भारतीय वीकेंड का रूप भी वही है जो अंग्रेजों ने तय किए थे. यूं तो रविवार की छुट्टी का इतिहास आजादी से पुराना है, जो कि 1857 की क्रांति से जुड़ा हुआ है. इसी क्रांति ने भारतीय लोगों को ये विश्वास दिलाया कि वे अंग्रेजी हुकूमत की सारी बातें मानने के लिए मजबूर नहीं हैं. गलत के लिए आवाज उठाई जा सकती है.
संडे को छुट्टी का प्रस्ताव
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आजादी के पहले जब अंग्रेजों की सरकार हुआ करती थी, उस वक्त ब्रिटिश अधिकारी समेत अन्य बाकी दिन काम करके संडे के दिन चर्च जाया करते थे. वहीं, दूसरी ओर मजूदरों को सप्ताह के सातों दिन मिल में काम करना पड़ता था. देखा जाए तो उन्हें एक दिन की भी छुट्टी नहीं दी जाती थी. मजदूरों की इस व्यथा को उस वक्त के मजदूरों के नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने समझा, जिसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने संडे को छुट्टी का प्रस्ताव रखा.
रविवार को छुट्टी का दिन
मजदूरों के नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने कहा कि, सप्ताह में 6 दिन काम करने के बाद 1 दिन सभी को अवकाश का मिलना चाहिए. इस बात से पहले तो अंग्रेजों की सरकार राजी हुई, लेकिन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार ब्रिटिश हुकूमत को उनकी बात माननी पड़ी, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 10 जून 1890, आखिरकार रविवार को छुट्टी का दिन घोषित कर दिया.
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