बिहार में बीते साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का फैसला लिया था। इस विधेयक को बीते साल के नवंबर माह में विधानसभा और विधान परिषद दोनों से मंजूरी मिल गई थी। इसके बाद राज्यपाल के हस्ताक्षर से अधिसूचना जारी कर इसे लागू किया गया। परंतु अब इसके विरोध में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। इसके बाद अब आरक्षण के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई होगी।
दरअसल, राज्य सरकार की ओर से सरकारी नौकरियों में 65 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के विरुद्ध दायर याचिका पर पटना हाई कोर्ट में 12 जनवरी को सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी। याचिका में राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर, 2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई है। उस कानून के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा व अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 65 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
वहीं, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी मात्र 35 प्रतिशत पदों पर सरकारी सेवा में जा सकते है, जिसमें ईडब्ल्यूएस के लिए निर्धारित दस प्रतिशत आरक्षण भी सम्मिलित है। यह संविधान की धारा-14 और धारा 15(6)(b) के विरुद्ध है।
उधर, जाति आधारित गणना के बाद जातियों के अनुपात के आधार पर आरक्षण का यह निर्णय लिया गया है न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर। उन्होंने बताया कि इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था।