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टूट जाएगा आगरा का शाही हमाम? 400 साल पहले अलीवर्दी खान ने बनवाया था, रहते हैं 12 परिवार

आगरा के छिपीटोला स्थित शाही हमाम अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है. शाही हमाम की जमीन पर रिहायसी कॉलोनी बसाने के लिए एक तरफ बिल्डर ने तोड़फोड़ की है, वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट ने इस तोड़फोड़ पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. बड़ी बात यह कि 153 साल पहले तक संरक्षित स्मारक रहे इस शाही हमाम से एएसआई ने मुंह मोड़ लिया है. ऐसे में अब इसका अस्तित्व बचाने के लिए शहर के लोग मैदान में कूद पड़े हैं.आगरा के इतिहासकारों के मुताबिक यह शाही हमाम का निर्माण 16वीं शदी में मुगल दरबार के प्रमुख दरबारी अलीवर्दी खान ने कराया था.

तुर्किए शैली में बने इस इमारत और स्नानागार के निर्माण में लाखौरी ईंटों और लाल बलुई पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है. आगरा फोर्ट के बेहद करीब स्थित इस शाही हमाम का इस्तेमाल उस समय बादशाह से मिलने के लिए दूसरे देशों या राज्यों से आने वाले राजा-महाराजा करते थे. बादशाह से मिलने से पहले उन्हें इस हमाम में स्नान करना होता था. मुगल सल्तनत खत्म होने के बाद यह शाही हमाम सब्जी और फल मंडी में तब्दील हो गई थी.

153 साल पहले तक संरक्षित स्मारक था हमाम

हमाम के अहाते में बने कमरों का इस्तेमाल फल विक्रेता गोदाम के रूप में करने लगे. वहीं कुछ कमरों में लोगों ने आवास भी बना लिया. हालांकि इसके लिए सरकार उनसे किराया वसूल करती रही है. इस हमाम के बाहर भी घनी बस्ती है और सघन बाजार है. आगरा के इतिहासकारों के मुताबिक 153 साल पहले तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से इसे स्मारक घोषित किया गया था. हालांकि अब एएसआई के अधिकारी इसे संरक्षित स्मारक नहीं मानते.

हाईकोर्ट ने लगाई है तोड़फोड़ पर रोक

इसके चलते देखरेख के अभाव में यह स्मारक जर्जर होने लगा है. इसी क्रम में एक हफ्ते पहले एक बिल्डर ने इसे तोड़ने की भी कोशिश की थी. इसमें बने कई कमरों पर बुलडोजर भी चला दिया गया था. हालांकि उसी समय स्थानीय लोग हाईकोर्ट पहुंचे गए और हाईकोर्ट ने तोड़फोड़ पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. यह मुकदमा न्यायमूर्ति सलील राय और माननीय न्यायमूर्ति समीत गोपाल की कोर्ट में दाखिल हुआ था. उस समय आगरा के लोगों ने अलविदा शाही हमाम के नाम से एक हेरिटेज वॉक भी निकाली थी.

1992 तक जाता था किराया

इस हमाम में बने कमरों में रहने वाले लोगों के मुताबिक उनके पास किराएनामा उपलब्ध है. इस किराएनामे के मुताबिक 1992 तक वह 100 रुपए किराया सरकार को देते थे. इससे पहले 1947 के आसपास का एक दस्तावेज भी दिखाया. इसपर राय बहादुर सेठ ताराचंद रईस व जमींदार गवर्नमेंट ट्रेजरर का नाम लिखा है. इसी के साथ किराएदार के रूप में प्यारे बल जयराम का नाम लिखा है. स्थानीय लोगों ने 1925 में बना एक किरायानामा भी दिखाया, जिसपर एक कमरे का किराया 6 रुपए सालाना बताया गया है.


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