तेजस्वी ताजपोशी के जाएंगे करीब या होंगे दूर! तीन सीटों पर टक्कर में सब पता चल जाएगा, आंधी चलेगी या लालटेन बुझेगी

2024 लोकसभा चुनाव में बिहार विधानसभा के चार विधायकों ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की. चारों विधायकों के सांसद बनने के बाद बिहार विधानसभा में चार सीट खाली हो जाएगी, जिसपर उपचुनाव होगा. इन चार विधानसभा क्षेत्र में तीन पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है. तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन तीन सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने की होगी।

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लोकसभा चुनाव जीतकर चार विधायक बने सांसद: बिहार के 4 विधायक अब सांसद बन गए हैं. अब वह देश के ऊपरी सदन संसद में बैठेंगे. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने गया(सु) लोकसभा सीट से जीत दर्ज की है. बेलागंज विधानसभा के विधायक सुरेंद्र यादव ने जहानाबाद लोकसभा सीट से जीत दर्ज की. तरारी विधानसभा के विधायक सुदामा प्रसाद ने आरा लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की. वहीं रामगढ़ के विधायक सुधाकर सिंह ने बक्सर लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज हासिल की।

इमामगंज विधानसभा क्षेत्र: बिहार की इमामगंज विधानसभा सीट गया जिले में है. यह सीट SC प्रत्याशी के लिए रिजर्व है. यहां से हम (से) के जीतनराम मांझी विधायक हैं. 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी यहां से चुनाव जीते थे. उन्होंने 2015 में अजेय समझे जाने वाले JDU उम्मीदवार और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके उदय नारायण चौधरी को करीब 30 हजार वोटों से हराया था. 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी ने उदयनारायण चौधरी को हरा कर जीत दर्ज की थी।

मांझी की मजबूत दावेदारी: जीतनराम मांझी के सांसद बनने के बाद यह सीट रिक्त हुई है. इस सीट पर उपचुनाव होगा. इस सीट से जीतनराम मांझी के परिवार के किसी सदस्य के चुनाव लड़ने की चर्चा है. जीतनराम मांझी के छोटे बेटे प्रवीण मांझी इस सीट से अपनी दावेदारी कर रहे हैं. प्रवीण मांझी का मजबूत पक्ष है कि वो जीतनराम मांझी के पुत्र हैं. दूसरा कि वह लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं. प्रवीण मांझी के अलावे भी कई स्थानीय नेता जो पार्टी में सक्रिय हैं वह भी अपनी दावेदारी मजबूती से पेश कर रहे हैं।

बेलागंज विधानसभा क्षेत्र: गया जिले के बेलागंज विधानसभा क्षेत्र के बारे में कहा जाता है कि यह आरजेडी का बहुत ही मजबूत गढ़ है. बेलागंज विधानसभा सीट पर करीब तीन दशक से डॉ. सुरेंद्र प्रसाद यादव जीतते रहे हैं. सुरेंद्र यादव 1990,1995 में जनता दल और 2000 फरवरी-अक्टूबर 2005, 2010 और 2015 और 2020 में RJD के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं।

राजद की परंपरागत सीट: 2024 लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र यादव ने जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की है. अब सुरेंद्र यादव बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से इस्तीफा देंगे और यहां पर उपचुनाव होगा. उपचुनाव में सुरेंद्र यादव के पुत्र विश्वनाथ यादव इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. विश्वनाथ यादव का कहना है कि उनके पिताजी ने पिछले 30 वर्षों से क्षेत्र के लिए बहुत सारे काम किए हैं. वह भी लगातार अपने क्षेत्र में राजनीति में सक्रिय रहे हैं. यदि आरजेडी उनपर भरोसा करती है तो वह पार्टी के भरोसा पर पूरी तरीके से खरा उतरेंगे।

रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र: कैमूर जिला की रामगढ़ सीट को आरजेडी का गढ़ रहा है. इस सीट से राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह छह बार विधायक चुने गए. पहली बार 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में रामगढ़ सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने सेंध लगाई और अशोक कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी, लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में जगतानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह ने राजद के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की. बाद में महागठबंधन की सरकार में कृषि मंत्री भी बने थे।

राजद की पकड़ मजबूत: 2024 लोकसभा चुनाव में सुधाकर सिंह लोकसभा के लिए बक्सर से निर्वाचित हुए हैं. उनकी जीत के बाद इस सीट पर फिर से उपचुनाव होगा. उपचुनाव में राजद की तरफ से जगदानंद सिंह के छोटे पुत्र अजीत सिंह पार्टी के सशक्त दावेदार हैं. कुछ दिन पहले ही अजीत सिंह ने जदयू छोड़कर राजद की सदस्यता ग्रहण की है।

सुधाकर के भाई ठोक सकते हैं ताल: ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में अजीत सिंह कहा कि पिछले 15 वर्षों से वह अपने क्षेत्र में राजनीतिक और सामाजिक कार्य से जुड़े हुए हैं. किसानों की समस्या हो या आम लोग की समस्या हर समय वह लोगों के लिए उपलब्ध रहते हैं. अजीत सिंह ने कहा कि वह राजनीति में सक्रिय रूप से वर्षों से काम कर रहे हैं. रामगढ़ विधानसभा के उपचुनाव में यदि आरजेडी उनको टिकट देती है तो वह पूरी तैयारी के साथ लड़ने के लिए तैयार हैं।

“बीजेपी में भी अनेक नेता ऐसे हैं जो परिवारवाद के प्रतीक हैं. बीजेपी के वे नेता सीधे पिता की अनुकंपा पर राजनीति में आए हैं. लेकिन मैं पिछले 15 वर्षों से लगातार बिना किसी पद पर रहे समाज सेवा से जुड़ा हुआ हूं. इसलिए यदि चुनाव लड़ता हूं तो उसको परिवारवाद से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.”- अजीत सिंह, आरजेडी नेता

तरारी विधानसभा क्षेत्र: तरारी विधानसभा सीट आरा लोकसभा का ही हिस्सा है. पहले इसे तीरो विधानसभा के नाम से जाना जाता था. पीरो लोकसभा क्षेत्र पर कभी बाहुबली सुनील पांडे का प्रभाव रहा था, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में सीपीआई-एमएल के सुदामा प्रसाद ने जीत दर्ज की थी. इस सीट पर उपचुनाव में फिर से सीपीआई-एमएल अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी।

उपचुनाव तेजस्वी के लिए लिटमस टेस्ट: चारों नवनिर्वाचित सांसदों के बिहार विधानसभा के सदस्य से इस्तीफा देने के बाद इन चार सीटों पर उपचुनाव होगा. इन चार सीटों में तीन सीट पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है. बेलागंज रामगढ़ पर राजद का कब्जा है तो तरारी पर सीपीआई – एमएल का कब्जा है. इमामगंज विधानसभा सीट एनडीए के सहयोगी दल हम(से) का कब्जा है. इसलिए यह उपचुनाव तेजस्वी यादव के लिए किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं है।

क्या कहना है राजद का: तेजस्वी के सामने इन तीन सीटों को बचाने की चुनौती भी है. इसके अलावा इमामगंज सीट को भी अपने पाले में लाने के लिए नई रणनीति बनाने होगी. क्योंकि तेजस्वी यादव अभी से 2025 विधानसभा चुनाव में चार गुना बेहतर प्रदर्शन का दावा कर रहे हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि आरजेडी हमेशा चुनाव को लेकर तैयार रहती है. बिहार विधानसभा के चार सदस्य इस बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज किए हैं, जिसमें से तीन इंडिया गठबंधन के हैं।

“तेजस्वी यादव के 17 महीने के कार्यकाल के कारण बिहार की जनता ने लोकसभा के चुनाव में उनको अपना समर्थन दिया है. बिहार विधानसभा के उपचुनाव में आरजेडी अपनी तीन खाली होने वाली सीट के अलावे दो अन्य सीटों पर भी यानी कुल 5 सीट पर जीत दर्ज करेगी.”- एजाज अहमद, आरजेडी प्रवक्ता

क्या मानते हैं विश्लेषक: वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि बिहार विधानसभा का उपचुनाव तेजस्वी यादव के लिए लिटमस टेस्ट होगा. उपचुनाव का रिजल्ट हमेशा से चौंकाने वाला रहा है. राजद की तरफ से सभी सीट पर जीत का दावा किया जा रहा है. लेकिन इसके दूसरे भी मायने हैं।

“राजनीति में दावा हर राजनीतिक दल करता है. यह राजनीति का एक माइंड गेम है जो हर राजनीतिक दल करता है. लेकिन राजद यदि यह जीत का दावा कर रही है तो उसके पीछे कारण यह है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा है. पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार चुनाव में जीत का मार्जिन भी कम रहा है. राजनीतिक दल जीत का दावा करती है लेकिन उनके दावों पर मुहर वहां के मतदाता लगाते हैं.”-डॉ संजय कुमार,वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक

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