Bihar

CM नीतीश की शराबबंदी को डूबो कर ही मानेंगे..? चार जिलों में ‘अधीक्षक’ की जगह ‘इंस्पेक्टर’ रखने की क्या है मजबूरी, मद्य निषेध विभाग को सीनियर ‘अफसर’ की बजाय जूनियर पर भरोसा

बिहार में सिर्फ कहने को शराबबंदी है. यहां शराबबंदी कानून को हर मोड पर ठेंगा दिखाया जा रहा है. मुख्यमंत्री के सपने को विफल करने में सरकारी सिस्टम ज्यादा जिम्मेदार है. मद्य निषेध विभाग और पुलिस के कंधों पर शराबबंदी सफल कराने की जिम्मेदारी है. लेकिन यही दो विभाग शराबबंदी फेल कराने के सबसे ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं. मद्य निषेध विभाग का हाल तो और भी खराब है. इस विभाग के कई अधिकारी-कर्मी शराब माफियाओं से मिले हुए हैं. बाकि का कसर विभाग के बड़े-बडे हाकिम पूरी कर दे रहे. तभी तो शराब को लेकर संवेदनशील जिले जो पड़ोसी राज्य से सटे हैं, उसे जूनियर अधिकारी के हवाले कर दिया गया है. अब सवाल उठता है कि क्या विभाग के पास अधीक्षक रैंक के अफसर नहीं हैं ? अगर अधीक्षक स्तर के अधिकारी हैं, तब संवेदनशील जिलों में अधीक्षक का प्रभार इंस्पेक्टर को क्यों दिया गया ? मद्य निषेध विभाग को इस सवाल का जवाब देना चाहिए.

अधीक्षक की जगह इंस्पेटर रखने की क्या है मजबूरी ? 

कुछ माह पहले बक्सर के उत्पाद अधीक्षक दिलीप पाठक शराब माफियाओं से माल कमाने में फंसे थे. बक्सर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था. पुलिस अधीक्षक बक्सर द्वारा तत्कालीन उत्पाद अधीक्षक दिलीप पाठक के खिलाफ दर्ज केस को सत्य करार देते हुए गिरफ्तारी के आदेश दिए थे. इसके बाद से अधीक्षक फरार हो गए थे. काफी फजीहत होने के बाद विभाग ने आरोपी अधीक्षक को सस्पेंड किया था. बताया जाता है कि तभी से उस जिले में तैनात एक इंस्पेक्टर अधीक्षक का काम देख रहे हैं. दिसंबर 2024 में कैमूर के प्रभारी अधीक्षक को भी शराब माफियाओं से मिलीभगत के आरोप में हटाया गया था. इसके बाद वहां भी एक जूनियर इंस्पेक्टर को अधीक्षक का प्रभार काम कराया जा रहा है. दोनों जिला पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है. शराब के कारोबार को लेकर बक्सर-कैमूर जिला काफी संवेदनशील है.

सिवान-शेखपुरा में भी यही खेल चल रहा

मद्य निषेध विभाग ने सिवान के साथ भी यही प्रयोग किया है. शराब के मामले में यह जिला भी काफी संवेदनशील है. लेकिन यहां भी अधीक्षक स्तर के अधिकारी नहीं हैं. विभाग ने एक इंस्पेक्टर को अधीक्षक का प्रभार दे दिया है. उत्तर प्रदेश से इस जिले के रास्ते शराब की बड़ी खेप उत्तर बिहार के कई जिलों तक में पहुंचती है. लेकिन मद्ध निषेध विभाग को इससे मतलब नहीं. शेखपुरा वैसे तो छोटा जिला है, लेकिन यहां भी अधीक्षक का पद खाली है. इंस्पेक्टर को ही अधीक्षक का प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है. बताया जाता है कि विभाग में अधीक्षक स्तर कई अधिकारी उपलब्ध हैं, फिर भी जूनियर को सीनियर का चार्ज देकर फील्ड में रखा गया है.

..तो अधीक्षक रैंक के अधिकारी नहीं हैं ?

हमने इस सवाल का जवाब विभाग के बड़े अधिकारियों से ढूंढने की कोशिश की. हमने विभाग के सचिव और आयुक्त से जानना चाहा कि आखिर किस परिस्थिति में संवेदनशील जिलों में इंस्पेक्टर को ‘अधीक्षक’ का प्रभार दिया गया है? इनमें से तीन जिले बक्सर, कैमूर और सिवान शराब को लेकर काफी संवेदनशील है. इसके बाद भी इन जिलों में अधीक्षक की बजाय इंस्पेक्टर को प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है. क्या विभाग के पास अधीक्षक रैंक के अधिकारी नहीं हैं ? अगर हैं तो फिर  इंस्पेक्टर को इन संवेदनशील जिलों में अधीक्षक का प्रभार क्यों दिया गया है ? हालांकि इस सवाल का जवाब विभाग से नहीं मिल सका.

हालांकि मद्य निषेध विभाग दिखावे के लिए तरह-तरह के आदेश भी जारी करता है. 24 दिसंबर को विभाग ने शराब पर अंकुश लगाने, अभियोग के अनुश्रवण, मद्य निषेध इकाई से समन्वय व तकनीकी सहायता के लिए तीन सदस्यीय कमेटी भी बनाई है.


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