राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि संस्कार भारती को समाज की संस्कृति को बदलने के लिए कला के इस्तेमाल की कोशिशों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। भागवत बेंगलुरु में संघ से संबद्ध संस्कार भारती द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कलासाधक संगम के दौरान ‘भरत मुनि सम्मान समारोह’ को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आजादी के कई वर्षों के बाद भारत अपने ‘आत्मसम्मान’ की खोज की ओर अग्रसर है।
“बुरी संस्कृति फैलाने के लिए हो रहा कला का उपयोग”
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ‘‘कला का इस्तेमाल लोकप्रियता हासिल करने और समाज की संस्कृति को बदलने के लिए किया गया। कभी-कभी कला का उपयोग बुरी संस्कृति फैलाने के लिए किया जाता है। संस्कार भारती को उससे निपटने के लिए भी तैयार होना होगा।’’ उन्होंने कहा कि संस्कार भारती को अपनी संस्कृति के विकास के लिए कलाकारों की जमात की आवश्यकता होगी। कलाकारों की जमात ऐसी होनी चाहिए, जो विश्व संस्कृति का मार्गदर्शन कर सकें। भागवत ने भविष्यवाणी की कि देश का उत्कर्ष होगा और यह अपनी पहचान बनाएगा। उन्होंने कहा कि अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में रामलला के आगमन के साथ भारत का ‘स्व’ वापस आ गया है।
“धीरे-धीरे अब भारत जागेगा, अपने आप को पहचानेगा”
संस्कार भारती द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कलासाधक संगम के दौरान भागवत ने कहा, “हमें स्वतंत्र हुए 75 साल हो गए, लेकिन स्वतंत्रता का जो स्व है, भारत की जो भारतीयता है, उसका गौरव जनमानस में फिर से उदित होने में बहुत समय गया। अब धीरे-धीरे वह हो रहा है और इसलिए इस प्रकार भारतीयता की किसी भी पहलू में साधना करके उसको कायम रखते हुए उसको चलाते रहना, अक्षुण रखना… ऐसे काम करने वाले जो तपस्वी थे, वह समाज की दृष्टि से लोकमान्यता, राज्यमान्यता की दृष्टि से एक तरह से उपेक्षित थे। वह उपेक्षा अब समाप्त हो गई। धीरे-धीरे अब भारत जागेगा, भारत अपने आप को पहचानेगा।”
“रामलला क्या पधारे, भारत का स्व लौट कर आया”
भागवत ने आगे कहा, “22 जनवरी को श्री रामलल के मंदिर में आवीरभाव के समय मैंने यह कहा था कि मंदिर में रामलला क्या पधारे, भारत का स्व लौट कर आया है। उस घटना के बाद अब यह श्रृंखला चल पड़ेगी। प्रत्येक क्षेत्र में भारत के स्व के प्रकटीकारण के ऐसे प्रसंग दृष्टिगोचर होते जाएंगे और रामलला के प्रकट होने के बाद ऐसा पहला प्रसंग संस्कार भारती के कारण देश को उपलब्ध हुआ है। यह वक्तव्य आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बंगलुरु में संस्कार भारती द्वारा आयोजित चार दिवसीय अखिल भारतीय कला साधक संगम के अवसर पर व्यक्त किया।