ब्रह्म यानि तप और चारिणी यानि आचरण होता है. मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. मां सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर कठोर तपस्या करती हैं. इनके मुख पर अद्भुत तेज विधमान होता है. मां के एक हाथ में अक्ष माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है.
पूजा का शुभ मुहूर्तः या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इस जप से मां प्रसन्न होती हैं. इनकी उपासना से लक्ष्य प्राप्त करने की सीख मिलती है. शुक्रवार को पूजा का शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए. चर यानि सामान्य पूजा के लिए सुबह 06.16 से 07.44, लाभ के लिए सुबह 7.44 से सुबह 9.13 और अमृत के लिए सुबह 9.13 से सुबह 10.41 तक शुभ मुहूर्त है.
माता को क्या पसंद है? नवरात्रि के दूसरे दिन मां की पूजा में विशेष ध्यान रखना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार इस दिन शुभ रंगा हरा माना जाता है. माता को चमेली का फूल प्रिय है. भोग में पंचामृत और शक्कर चढ़ाएं. पूजा विधि की बात करें तो इस दिन हरे रंग का वस्त्र पहनें और देवी के मंत्र ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥ का जाप करते हुए भोग अर्पित करें.
दूसरे दिन पूजा का लाभः माता यह संदेश देती है कि जीवन में तपस्या और कठोर परिश्रम के बिना सफलता नहीं मिल सकती है. बिना मेहनत की सफलता मिलना अच्छा नहीं है. इसलिए इस दिन मां की पूजा करने से अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाने की शक्ति मिलती है. भक्त को अपने लक्ष्य में सफलता जरूर मिलती है.