रूस-यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों का पिंडदान शनिवार को गयाजी में किया गया है। इसके लिए यूक्रेन की यूलिया (28) गया आई। उसने पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ युद्ध में मारे गए लोगों और अपने परिजन की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए श्राद्ध तर्पण किया।
यूलिया ने कहा कि भारतीय परंपरा और गयाजी में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। इसकी जानकारी मिलने के बाद वो शुक्रवार की रात गया पहुंची। सुबह देवघाट के समीप पिंडदान और तर्पण किया।
युद्ध में यूलिया के माता-पिता मारे गए
यूलिया की माता-पिता युद्ध में मारे गए थे। परिवार के कुछ सदस्य भी इस युद्ध में मारे गए। यूलिया के परिवार में सिर्फ वो ही बची है। वो अक्सर परेशान रहती थी। यूक्रेन में यूलिया हिंदू जागरण समिति के संपर्क में आई। नागालिया सरनमा हिंदू जागरण समिति की अध्यक्षा हैं। इनके विदेशों में 5 लाख शिष्य हैं। यूलिया भी नागालिया सरनमा की शिष्या बनी। इसके बाद नागालिया सरनमा के सुझाव पर ही यूलिया गया पहुंची है।
यूनिसेफ के मुताबिक, रूस और यूक्रेन की सालभर की जंग ने 27 हजार से ज्यादा की जानें ले ली हैं। वहीं 1.86 करोड़ से ज्यादा लोगों को बेघर करके उन्हें मुल्क छोड़ने को मजबूर किया है। युद्ध से यूक्रेन के 50 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई रुक गई।
सनातन धर्म के प्रचारक ने दी जानकारी
विदेश में हिंदू जागरण समिति और सनातन धर्म प्रचारक के सदस्य अलोक नाथ गमदास ने बताया कि समिति की नागालिया सरनमा ने यूक्रेन की यूलिया को गया में पिंडदान की स्वीकृति दी। इसके बाद यूक्रेन और रूस युद्ध में मारे गए सैनिक, आम नागरिकों, अपने माता-पिता, भाई-बहन समेत विश्व शांति के लिए यूक्रेन से आई यूलिया गया जी पहुंचकर पिंडदान और तर्पण किया। यूलिया ने बताया कि मैं सनातन धर्म का प्रचार करने वाले नागालिया सरनमा की शिष्य हूं।
यूलिया ने पहन रखी थी साड़ी
पिंडदान और कर्मकांड के दौरान यूलिया ने साड़ी पहन रखी थी। अपने हाथों से यूलिया ने पिंड बनाया और पुरोहित के निर्देश पर सभी कर्मकांड विधि विधान से पूरा किया। फल्गु के बाद पिंड सहित अपने पुरोहित के साथ विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में भगवान के चरणों में पिंड अर्पित कर श्रद्धा के साथ माथा टेका। उसने बताया कि यह सारा काम उसके आत्मा को स्पर्श करता है।
यूलिया बताती है कि भारतीय परंपरा, भारत के इतिहास और खासकर गयाजी में पितरों को पिंडदान करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है, ऐसा पढ़कर वह यहां आई हैं। विश्वास, आस्था और श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों के लिए कृतज्ञता ज्ञापन का यह अनुष्ठान सुनकर मन में भारत आकर गयाजी में पिंडदान करने की इच्छा हुई थी। अब पिंडदान किया है।