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उत्तराखंड के UCC के खिलाफ उतरा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जानें क्या कहा

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बुधवार को उत्तराखंड विधानसभा में पास हुआ समान नागरिक संहिता विधेयक के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उतर आया है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया समान नागरिक संहिता विधेयक अनुचित, अनावश्यक और विविधता विरोधी है। इसे राजनैतिक लाभ के लिए ज़ल्दबाजी में पेश किया गया है। यह केवल दिखावा और राजनीतिक प्रचार से अधिक कुछ नहीं है।

‘यह जल्दबाजी में लाया गया कानून’

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैय्यद क़ासिम रसूल इलियास ने कहा है कि ज़ल्दबाजी में लाया गया यह प्रस्तावित क़ानून केवल तीन पहलू पर आधारित है। सर्वप्रथम विवाह और तलाक़ का संक्षेप में उल्लेख किया गया है उसके बाद विस्तार से विरासत का उल्लेख किया गया है और अंत में अजीब तौर पर लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए एक नई क़ानूनी प्रणाली प्रस्तुत की गई है। ऐसे रिश्ते सभी धर्मों के नैतिक मूल्यों को प्रभावित करेंगे।

‘धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है यह कानून’

उन्होंने कहा कि यह क़ानून इस मायने में भी अनावश्यक है कि जो भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक पारिवारिक मामलों से अपने पारिवारिक मामलों को बाहर रखना चाहता है उसके लिए हमारे देश में विशेष विवाह पंजीकरण अधिनियम और उत्तराधिकार अधिनियम का क़ानून पहले से ही मौजूद है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित क़ानून संविधान के मौलिक अधिकार आर्टिकल 25, 26 और 29 का भी खंडन करता है जो धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है। इसी प्रकार यह क़ानून देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता (Religious & Cultural Diversities) के भी विरुद्ध है जो इस देश की प्रमुख विशेषता है।

पिता की संपत्ति बंटवारे पर भी लॉ बोर्ड ने उठाए सवाल

बोर्ड प्रवक्ता ने कहा कि इस प्रस्तावित क़ानून के अंतर्गत पिता की संपत्ति में लड़का और लड़की दोनों का हिस्सा बराबर कर दिया गया है जोकि शरीयत के विरासत क़ानून के बिल्कुल विपरीत है। इस्लामिक विरासत क़ानून संपत्ति के न्यायसंगत वितरण पर आधारित है जिसमें परिवार की जिसकी जितनी वित्तीय जिम्मेदारी होती है संपत्ति में उसकी उतनी ही हिस्सेदारी होती है। इस्लाम किसी महिला पर घर चलाने का बोझ नहीं डालता। यह ज़िम्मेदारी पूरी तरह से पुरुष पर होती है और उसी के अनुसार संपत्ति में उसका हिस्सा होता है। संपत्ति की हिस्सेदारी ज़िम्मेदारियों के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं और कुछ मामलों में महिला को पुरुष के बराबर या उससे अधिक हिस्सा भी मिल जाता है। इस्लामी क़ानून का यह अर्थ उन लोगों की समझ से परे है जो चीज़ों को केवल अपने विवेक के चश्मे से देखते हैं।

एक से अधिक शादी पर रोक पर भी लगाया सवालिया निशान

इस प्रस्तावित क़ानून में दूसरी शादी पर प्रतिबंध लगाना भी केवल प्रचार मात्र के लिए है क्योंकि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से ही पता चलता है कि इसका अनुपात भी तीव्रता से गिर रहा है। दूसरी शादी मौज-मस्ती के लिए नहीं बल्कि सामाजिक आवश्यकता के कारण की जाती है। यदि दूसरी शादी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इसमें महिला की ही हानि है। इस मामले में आदमी को मजबूरन पहली पत्नी को तलाक़ देना होगा।

Shailesh Kumar

My name is Shailesh and I am a graduate working for VOB. I have been updating news on website from more than three years.

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