धुलेंडी, जिसे होली के बाद मनाया जाता है, रंगों का त्योहार है।यह त्योहार भारत और नेपाल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, पानी और कीचड़ डालते हैं और ढोल-नगाड़े बजाकर नाचते-गाते हैं।
धुलेंडी, जिसे होली के बाद मनाया जाता है, रंगों का त्योहार है. यह त्योहार भारत और नेपाल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, पानी और कीचड़ डालते हैं और ढोल-नगाड़े बजाकर नाचते-गाते हैं. धुलेंडी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं. फिर, वे एक दूसरे पर रंग, पानी और कीचड़ डालते हैं. ढोल-नगाड़े बजते हैं और लोग नाचते-गाते हैं. कई जगहों पर, लोग रंगों से सजी हुई यात्राएं निकालते हैं. धुलेंडी का त्योहार दोस्ती और भाईचारे का प्रतीक है. इस दिन लोग आपसी मतभेदों को भुलाकर एक दूसरे से गले मिलते हैं और रंगों से खेलते हैं।
धुलेंडी क्यों मनाया जाता है?
धुलेंडी मनाने के पीछे कई कहानियां हैं. एक कहानी के अनुसार, भगवान विष्णु ने राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का वध किया था. होलिका को आग में जलने का वरदान प्राप्त था, इसलिए वह भगवान प्रह्लाद को लेकर आग में कूद गई. लेकिन भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचा लिया और होलिका जल गई. इस जीत का जश्न मनाने के लिए लोग रंगों और पानी से खेलते हैं।
एक अन्य कहानी के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से खेला था. इसी खुशी में लोग धुलेंडी पर रंगों से खेलते हैं।
धुलेंडी के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
रंगों का महत्व: धुलेंडी पर इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों का विशेष महत्व होता है. लाल रंग प्रेम और ऊर्जा का प्रतीक है, पीला रंग खुशी और समृद्धि का प्रतीक है, हरा रंग प्रकृति और जीवन का प्रतीक है, और नीला रंग शांति और समर्पण का प्रतीक है।
पानी का महत्व: धुलेंडी पर पानी का उपयोग बुराइयों को दूर करने और शुभता का स्वागत करने के लिए किया जाता है।
कीचड़ का महत्व: धुलेंडी पर कीचड़ का उपयोग मिट्टी से जुड़ने और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
धुलेंडी एक मजेदार और जीवंत त्योहार है जो लोगों को एक साथ लाता है और खुशी और उत्साह का माहौल बनाता है।
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