आपराधिक कानूनों से जुड़े तीनों विधेयकों पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने यह रेखांकित किया कि इससे लोगों को समय पर न्याय मिलना संभव हो सकेगा। ऐसा वास्तव में हो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए क्योंकि अभी तो तारीख पर तारीख का सिलसिला कायम है। इस सिलसिले को समाप्त करना आवश्यक ही नहीं।
एक बड़ा बदलाव, तकनीक के इस्तेमाल से कानून-व्यवस्था में सुधार के साथ समय पर मिलेगा न्याय
समय पर न्याय न मिलना एक गंभीर समस्या है।
आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन विधेयकों को संसद से स्वीकृति मिलना एक बड़ा कदम है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य से संबंधित विधेयकों के कानून का रूप लेने से केवल अंग्रेजों के जमाने के कानूनों से ही मुक्ति नहीं मिलेगी, बल्कि कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को सुधारने में भी मदद मिलेगी। इन प्रस्तावित कानूनों में आतंकवाद, महिला विरोधी अपराधों, देशद्रोह और भीड़ की हिंसा से संबधित मामलों को लेकर भी नए प्रविधान किए गए हैं। इसके अलावा कई ऐसे कृत्यों को अपराध की श्रेणी में लाया गया है, जिनसे निपटने के लिए अभी तक कोई प्रभावी उपाय नहीं थे। कायदे से औपनिवेशिक युग वाले आपराधिक कानूनों को बहुत पहले ही संशोधित-परिवर्तित कर दिया जाना चाहिए था, क्योंकि अंग्रेज शासकों ने इन कानूनों का निर्माण भारतीयों पर जबरन शासन करने के लिए बनाया था।
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