भोजन की बर्बादी हमारे चारों तरफ एक अनदेखी समस्या है. हर साल उत्पादित भोजन का एक तिहाई से ज्यादा बर्बाद हो जाता है, लेकिन बेंगलरु (Bengaluru) की एलिजाबेथ यॉर्क (Elizabeth Yorke) की एक जुनूनी पहल ‘सेविंग ग्रेन्स’ (Saving Grains) ने शहर में Beer की भट्टी में इस्तेमाल होने वाले बचे अनाज को बेकरी के सामान में बदलकर (Beer Waste Into Bread) बदलाव का तरीका ढूंढ निकाला है.

आपको जानकर भले  हैरानी हो लेकिन बीयर बनाने के प्रोसेस में बचे हुए अपशिष्ट अनाज को अच्छे आटे में बदलने का काम एलिजाबेथ बखूबी अंजाम दे रही हैं. उनका मकसद ‘सेविंग ग्रेन्स’ के जरिए भोजन की बर्बादी से बचाव करना है. इस आटे से वह कुकीज, ब्राउनी, ब्रेड और यहां तक कि रोटियों समेत कई चीजें बनाती हैं.

कैसे आया Beer Waste Into Bread का आइडिया?

एलिजाबेथ यॉर्क एक ट्रेंड शेफ हैं, जिन्होंने मनिपाल से अपनी डिग्री ली है. उन्होंने मैसूर के सेंट्रल फ़ूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और कैलीफोर्निया में ब्रेड स्पेशलिस्ट और फ़ूड हिस्टोरियन विलियम रूबेल के साथ काम किया है. साल 2016 में रूबेल के साथ काम करने के दौरान उन्हें शराब बनाने वाले और बेकर के बीच सदियों पुराने रिश्ते का पता चला.

यॉर्क कहती हैं “ऐतिहासिक रूप से शराब बनाने वाले और बेकर एक साथ मिलकर काम करने के लिए जाने जाते थे. परंपरागत रूप से दोनों के बीच गहरा रिश्ता है. कभी-कभी आर्थिक कारणों की वजह से जगह और समान सामग्री (अनाज, पानी और खमीर) एक दूसरे के साथ शेयर करते थे. बेकर शराब बनाने वालों को बची हुई रोटी देते थे और शराब बनाने वाले बेकर को रोटी बनाने के लिए खर्च किया हुआ अनाज और खमीर देते थे. इससे मुझे बहुत कुछ समझ में आया.”

ऐसे हुई Saving Grains की स्थापना

कई साल रसोई में काम करने के बाद उनका शिक्षा में इजाफा हुआ. वो चीजों को और बेहतर समझ सकीं. वहीं यॉर्क के अंदर यह हमेशा से जिज्ञासा बनी रहती थी कि उनका खाना कहाे से आ रहा है. फिर रूबेल के साथ उनकी इंटर्नशिप ने उनके अंदर फ़ूड सिस्टम सर्कुलर की समझ को और मजबूत किया. उन्होंने देखा कि अधिकतर संसधानों का इस्तेमाल हो रहा है, जबकि वेस्ट का बहुत कम. कोरोना महामारी के दौरान भारतीय फ़ूड सिस्टम को लेकर उनके अंदर उठ रहे सवाल और समस्याओं के लिए उन्होंने साल 2021 के अंत में ‘सेविंग ग्रेन्स’ की स्थापना की. जो वेस्ट को अनाज में बदलने का एक मिशन है.

अगर आपको वेस्ट खाने का विचार अजीब लगता है तो इस सोच को दूर कर दें क्योंकि शराब बनाने वाली कंपनियां शराब बनाने की प्रक्रिया में मुख्य रूप से जौ के आलावा गेंहू, ओट्स और राई जैसे अन्य अनाज का भी इस्तेमाल करती हैं. संक्षेप में ऐसे समझें कि अनाज को अंकुरित किया जाता है. शक्कर डालकर पकाया जाता है. फिर मसला जाता है और उसमें का तरल पदार्थ बीयर बनाने में प्रयोग होता है और बचा हुआ अनाज वेस्ट होता है, जिसे ‘खर्च अनाज’ (Spent Grains) कहते हैं.

एक साल में  12,000 KG बीयर वेस्ट को आटे में बदला

इस बचे हुए अनाज में अभी भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो खाने के लिए उपयुक्त होते हैं. यही वजह है कि इसका कुछ हिस्सा पशुओं के चारों के तौर पर इस्तेमाल होता है, जबकि अधिकतर बचे अनाज को फेंक दिया जाता है. अगर आकड़ों पर नजर डालें तो यह हैरान करने वाले हैं. अकेले बेंगलरु में तक़रीबन 70 माइक्रोब्रुअरीज हैं. अनुमान है कि वे मिलकर प्रतिदिन लगभग 12,000 किलोग्राम खर्च किया हुआ अनाज बचाते हैं. इसे पूरे साल से गुणा करें, और जो संख्याएं आएंगी वह वास्तव में चौंका देने वाली हैं. वहीं पूरे देश में 250-300 माइक्रोब्रुअरीज होने का अनुमान है, आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं.

शराब की भट्टी से मैश्ड अनाज को एकत्र किया जाता है. सेविंग ग्रेन्स के एक सहयोगी केंद्र में इसे सुखाया जाता है और आटे में मिला दिया जाता है. यॉर्क ने मामूली शुरुआत की, मगर पिछले साल लगभग 12,000 किलोग्राम बचे अनाज को अच्छे आटे में बदल दिया जिसमें 45% आहार फाइबर और 22% प्रोटीन होता है, जबकि कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम रहती है.

इस आटे का इस्तेमाल बिजनेस और घरेलू दोनों तरह से किया जाता है. वहीं सेविंग ग्रेन्स आटे के अलावा कुकीज, चाय बिस्किट, ब्रेड, रोटी, लड्डू और चिक्की भी बेचती है. जिसका स्वाद बहुत ही लजीज होता है. लोग काफी पसंद करते हैं.

हम साथ-साथ उन्नति करेंगे

बता दें कि धीरे-धीरे यॉर्क ने ऐसे सहयोगियों को जोड़ लिया है, जो कुछ ऐसा ही सोचते हैं. उनमें से एक बेंगलुरु की लोफ़र ​​एंड कंपनी है. यह एक कारीगर बेस्ड बेकरी है, जो स्थानीय अनाज का उपयोग कर पके हुए सामान में विशेषज्ञता रखती है. बेकरी के संस्थापक प्रणव उल्लाल ने कहा, “मैं हमेशा विभिन्न प्रकार के अनाज के साथ प्रयोग करने की कोशिश कर रहा हूं, इसलिए जब एलिजाबेथ ने मुझसे संपर्क किया, तो मैं एक्साइटेड हो गया.”

शुरुआत में इस आटे के साथ काम करना उल्लाल के लिए मुश्किल था. मगर, धीरे-धीरे उन्होंने 20 प्रतिशत तक खर्च किए गए अनाज के आटे का उपयोग करके ब्रूअर्स टोस्ट नामक एक स्पेशल पाव रोटी बनाई जिसे बहुत सारे ग्राहकों ने पसंद किया और यह लोकप्रिय हो गया. उनका कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बेकरी की अन्य पेशकशों की तुलना में ब्रेड में बहुत अधिक मिट्टी की सुगंध है. यह स्वादिष्ट है. स्पेशली पेस्टो और मसालेदार और तीखे Cheese स्प्रेड के साथ.

उन्होंने कहा “खर्च किए गए अनाज के आटे में पोषक तत्व और फाइबर की मात्रा अधिक होती है और यह ब्रेड में एक अलग तरह का स्वाद भी छोड़ता है. यह सहयोग हमारे विश्वास के साथ भी जुड़ा हुआ है और मैं एलिजाबेथ के उद्यम से काफी प्रभावित हुआ. इसलिए मैं इस सर्कुलर इकोनॉमी चक्र में उनके प्रयास में हर छोटी भूमिका निभाने के लिए उत्सुक था.” आटे ने पिज्जा बेस और Goan Poee ब्रेड में भी अच्छा काम किया है और उल्लाल ने इन उत्पादों को धीरे-धीरे मेनू में पेश करने की योजना बनाई है.

हालाँकि, यॉर्क के लिए यह मिशन खर्च किए गए अनाज के पुनर्चक्रण से कहीं अधिक है. उन्होंने कहा, “यह आडिया लोगों के जहन को सर्कुलर मॉडल की तरफ प्रेरित करेगा. यह मॉडल जवाबदेह, पारदर्शी, सहयोगात्मक और लोगों को केंद्र में रखकर तैयार किया गया है.” उन्हें उम्मीद है कि सेविंग ग्रेन्स की तरह प्रोटोटाइप माइक्रो-अपसाइक्लिंग किचन अधिक संभावनाओं को जन्म देगा.

फिलहाल, ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ दिलचस्प तरीके से चल रही है. सेविंग ग्रेन्स अपने खर्च किए गए अनाज का अधिकांश हिस्सा बेंगलुरु की गीस्ट ब्रूइंग कंपनी से प्राप्त करता है जो एक क्राफ्ट बियर ब्रांड है और ओल्ड मद्रास रोड पर अपनी प्रोडक्शन हाउस के निकट रेस्तरां में, बीयर ब्रांड सेविंग ग्रेन्स के आइटम भी परोसता है.


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