हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। यह त्योहार सूर्य देव और षष्ठी माता या छठी माता को समर्पित माना गया है। उत्तर भारत और बिहार के क्षेत्रों में छठ पूजा मुख्य रूप से मनाई जाती है। नहाय खाय से छठ पूजा के पर्व की शुरुआत मानी जाती है। यह व्रत मुख्यतः महिलाओं द्वारा परिवार के खुशहाल जीवन और संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए किया जाता है। कई पुरुष भी यह व्रत करते हैं।
इस दिन से शुरु हो रहा है छठ महापर्व
नहाय खाय का दिन – छठ के पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इस साल नहाय खाय 17 नबंवर, 2023 को किया जाएगा। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन केवल एक बार भोजन करती हैं।
खरना की तारीख – छठ पूजा का दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखा जाता है। इस वर्ष खरना 18 नबंवर, 2023 को किया जाएगा।
छठ पूजा का संध्या अर्घ्य – छठ पूजा के तीसरे दिन भी निर्जला व्रत रखा जाता है। इसके साथ ही इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा।
व्रत का पारण – छठ के चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। ऐसे में छठ के व्रत का पारण 20 नवंबर को किया जाएगा।
जान लें छठ से जुड़ी जरूरी बातें
छठ पूजा के पर्व में सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की पूजा की जाती है। साथ ही इस मौके पर सूर्य देव की बहन छठी मैया की भी पूजा का विधान है। हिंदू शास्त्रों में छठी मैया या षष्ठी मैया को संतानों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। वह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी हैं। छठ पूजा एकमात्र ऐसा समय है जब डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, क्योंकि हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का संकेत है तो जो डूबा है, उसका उदय होना भी निश्चित है, इसलिए प्रितकूल परिस्थतियों से घबराने की जगह उनका डटकर सामना करना चाहिए। माना जाता है कि सूर्यपुत्र कर्ण ने ही सूर्य देव की पूजा कर छठ पर्व का आरंभ किया था।
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