पांचों रामायणों के लेखक में सिर्फ आदि कवि ऋषि वाल्मीकि को राम के समय का माना जाता है। यह भी एक मान्यता है, कि वे राजा राम से मिले भी थे। शेष कवियों ने उनकी कथा को आधार बनाया और अपने समय के समाज की परिस्थितियों के अनुरूप वर्णन किया।इसीलिए पांचों रामायण के कई क्षेपक अलग-अलग हैं।

राम शबरी की कुटिया में गए थे, यह प्रसंग तो लगभग सभी रामकथाओं में है. लेकिन उन्होंने वहां शबरी के जूठे बेर खाए थे, यह कहीं नहीं लिखा हुआ मिलता है. रामकथा को लेकर जितनी भी प्राचीन रामायणें लिखी गई हैं, किसी में शबरी के जूठे बेर खाने का प्रसंग नहीं है. अलबत्ता सब में यह जरूर लिखा है, कि राम-लक्ष्मण सीता की खोज करते-करते शबरी की कुटिया में गए थे. उनकी प्रतीक्षा में व्याकुल शबरी ने उन्हें कंद-मूल, फल खिलाये थे. इसके बाद शबरी ने उन्हें सुग्रीव के बारे में बताया और फिर चिता में प्रवेश कर गई. इसके बावजूद फिल्मकार रामानंद सागर ने अपने टीवी सीरियल रामायण में शबरी द्वारा राम को जूठे बेर खाने का दृश्य डाला. यह शायद उन्होंने 20वीं सदी में राधेश्याम कथावाचक की रामायण से संदर्भ लिया हो।

राधेश्याम कथावाचक ने 20वीं सदी के पूर्वार्ध में रामायण को नाटक शैली में लिखा, तब उन्होंने भक्ति के साधकों के बीच चली आ रही इस कथा को जोड़ लिया. रामकथा पर विशेष अधिकार रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा के अनुसार, भक्तिकाल में भक्त और भगवान के बीच कोई भेद नहीं हो सकता. अतः दोनों के बीच कोई दुराव-छिपाव कैसा! इसीलिए सुख सागर में लिखा गया है, कि भीलनी के जूठे बेर प्रभु राम ने चाव से खाये. वह बेरों को पहले खुद चखती है, ताकि पता चल सके, कि प्रभु को वह मीठे बेर ही दे रही है।

राधेश्याम कथावाचक ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध में लिखी गई इस सुख सागर से यह प्रसंग उठा कर लिखते हैं,“सुंदर पत्तों के आसान पर अपने प्रभु को बिठलाती है. मेहमानी के कुछ बेरों को डलिया में भर कर लाती है. वे फल शबरी के जूठे थे, यह लिखा हुआ सुख सागर में है. हम भी कहते हैं, जो कुछ है वह प्रेम और आदर में है।”

हिंदी-उर्दू मिश्रित खड़ी बोली में रामायण

चूंकि राधेश्याम कथावाचक ने अपनी रामायण को हिंदी-उर्दू मिश्रित खड़ी बोली में लिखा है, इसलिए बनारस से लाहौर (बंटवारे के पहले का पंजाब) तक इसी रामायण के आधार पर रामलीलाएं होती थीं. इस रामायण को संवाद की शैली में लिखा गया है, इसके सारे प्रसंग जनता के बीच रच-बस गए. राधेश्याम कथावाचक पारसी थियेटर वाले अंदाज में संवाद लिखते थे इसलिए रामायण टीवी सीरियल में भी यही प्रसंग आए. इसके अलावा पहले भी रामायण को आधार बना कर जितनी फिल्में बनीं उनमें भी इसी रामायण की संवाद शैली ली गई और प्रसंग भी. राधेश्याम कथावाचक ने फिल्मों के लिए भी काम किया था. परंतु इस रामायण में गहराई नहीं थी, इस वजह से जितनी जल्दी यह लोकप्रिय हुई उतनी ही जल्दी इसे भुला भी दिया गया।

जो कथित सेकुलर लोग राम को महज एक कथा या मिथक मानते हैं, उनके विचारों को छोड़ दें. तो भी कम से कम पांच रामायणें ऐसी हैं, जिन्हें ऐतिहसिक संदर्भों में लिया जाता है. ये हैं, वाल्मीकि रामायण, कम्बन रामायण, रंगनाथ रामायण, कृतिवास रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस. इनमें से वाल्मीकि रामायण संस्कृत में, कम्बन ने अपनी राम कथा तमिल में लिखी तो रंगनाथ ने तेलुगू में. कृतिवास की रामायण बांग्ला में है और रामचरितमानस को तुलसी ने अवधी में लिखा है. वाल्मीकि रामायण को सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता है और तुलसी की रामचरितमानस के राम मर्यादा पुरुषोत्तम से अधिक साक्षात विष्णु के अवतार हैं. इसलिए तुलसी के रामलीला करते हैं. उनमें अलौकिकता है और उनका हर कदम का भविष्य में एक अर्थ होता है. मगर इनमें से किसी भी रामायण में शबरी के जूठे बेर खाने का वर्णन नहीं है ।

वाल्मीकि ही राम के समकालीन

इन पांचों रामायणों के लेखक में सिर्फ आदि कवि ऋषि वाल्मीकि को राम के समय का माना जाता है. यह भी एक मान्यता है, कि वे राजा राम से मिले भी थे. शेष कवियों ने उनकी कथा को आधार बनाया और अपने समय के समाज की परिस्थितियों के अनुरूप वर्णन किया. इसीलिए पांचों रामायण के कई क्षेपक अलग-अलग हैं. इनमें से तुलसीदास 16-17वीं सदी के हैं. वे भक्त कवि थे, सगुण भक्ति शाखा में उनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है. वे सिर्फ अपने आराध्य का गुणगान करने वाले कवि नहीं है बल्कि तत्कालीन हिंदू समाज की कमजोरी से वे दुखी थे. यह वह समय था जब हिंदू राजाओं का पराभव हो रहा था और मुगल साम्राज्य फैल रहा था. वे महसूस करते थे कि इसकी वजह हिंदुओं का वर्णाश्रम धर्म से हट जाना है. इसलिए वे हर वर्ण की व्यवस्था के अनुरूप समाज चाहते थे।

यहां ध्यान रखना है, कि वर्णाश्रम धर्म के अनुरूप व्यवस्था का मतलब किसी को श्रेष्ठ या किसी को निम्न बताना नहीं है. बल्कि समाज की एक व्यवस्था है जो उसकी हर इकाई को आत्मनिर्भर बनाती है. भारत एक ग्राम आधारित समाज रहा है. और ग्राम अपने आप में आत्मनिर्भर भी. हर व्यक्ति के काम निर्धारित थे. लेकिन जब यह व्यवस्था बिगड़ी तो समाज का अनुशासन टूट गया. उनके अनुसार हिंदू समाज की टूटन का यह एक बड़ा कारण है. इसलिए भी वे शबरी द्वारा राम को जूठे बेर खिलाने का क्षेपक नहीं गढ़ते।

प्रेमपंथ में अधर्म भी धर्म

जबकि उनकी पूर्ववर्ती मीरा यह वर्णन कर चुकी थीं और समकालीन सगुण भक्त कवि सूरदास सूर सागर में यह लिख चुके थे. जाहिर है, तुलसीदास भक्त होते हुए भी एक समाज सुधारक अधिक थे. उनके राम एक आदर्श हैं और समाज को अनुशासित रखने वाले नायक भी. यही कारण था, वे शबरी प्रसंग का वर्णन उसी तरह करते हैं, जैसा कि ऋषि वाल्मीकि ने किया था।

प्रेमपंथ में अधर्म भी धर्म है. इसलिए अगर शबरी अपने जूठे बेर राम को खिलाती है तो अधर्म नहीं हुआ. उसके आराध्य राम उसके प्रेमी हैं. मीरा भी कृष्ण को अपना प्रेमी बताती थीं. भक्ति में प्रेमिका या प्रेमी का दर्जा आराध्य से ऊपर है. पद्म पुराण में लिखा है, “प्रेम्णावशिष्टमुच्छिष्टम भुक्तवा फल चतुष्टयम. कृता रामेण भक्तानाम शबरी कबरी मणिः” (प्रेम पत्तनम) अर्थात् चार जूठे फल खाकर राम जी ने शबरी को भक्तों की चूड़ामणि बना दी. सूर सागर में सूरदास लिखते हैं, “शबरी आश्रम रघुबर आये, अर्घ्यासन दै प्रभु बैठाये. खाटे तजि फल मीठे लायी, जूठे भये सु सहज सुनायी” नामदेव कहते हैं, “जूठे फल शबरी के खाये. ऋषिस्थान विसराये।”

मगर मीरा तो प्रेम दीवानी थीं. मीरा लिखती हैं, कि भीलणी शबरी कोई रूपवती नहीं थी है, फिर भी राम जी नेह लगाया और दर्शन पाते ही सीधे बैकुण्ठ चली गई।

“अच्छे मीठे फल चाख-चाख बेर लायी भीलणी, ऐसी कहा अचारवती रूप नहीं एक रती, नीचे कुल ओछी जात अति ही कुलीचणी, जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण, ऊंच-नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी, ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में विमाण चढ़ी, हरि जू सू बांध्यो हेत, बैकुण्ठ में झूलणी, दास मीरा तरे सोई, ऐसी प्रीति करे जोई।”

शबरी से क्या कह गये थे मतंग मुनि

वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता की खोज के लिए वन-वन भटक रहे राम लक्ष्मण को राक्षस कबंध शबरी का पता बताता है. राम और लक्ष्मण शबरी के आश्रम में पहुंचते हैं. तब वह इन्हीं की प्रतीक्षा कर रही होती है, क्योंकि मतंग मुनि उससे कह गये थे कि रघुवंश के राम तुम्हारे पास स्वयं आयेंगे. उनसे मिलकर और उनको मार्ग बता कर ही तुम अपनी देह त्यागना. राम और लक्ष्मण को आया देख शबरी उठी और उनके पैर पकड़ लिये. राम इस सिद्धा तपस्विनी श्रमणी शबरी से पूछते हैं कि आपकी तपस्या कैसी चल रही है. तप में कोई विघ्न तो नहीं है. शबरी बताती है कि मैं आपकी ही प्रतीक्षा करती रही हूं. मैंने आपके लिए इस पंपा सरोवर के किनारे उगने वाले कंद-मूल एकत्र किए हैं।

शबरी अपने वन में लगाये हुए तरह तरह के फल उन्हें अर्पित करती है. वाल्मीकि ऋषि ने इस पूरे प्रसंग के संदर्भ में इतना ही लिखा है, कि राम ने शबरी द्वारा दिये गए फल खाए. उसने राम को सुग्रीव का ठिकाना बताया और जलती चिता में प्रवेश कर गई. वाल्मीकि रामायण के सुंदर कंद में यही वर्णन मिलता है. उन्होंने जूठे बेरों का उल्लेख नहीं किया है. अनुज्ञाता तु रामेण हुत्वात्मानं हुताशने. ज्वलत्पावकसंकाशा स्वर्गमेव जगाम सा।


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