भागलपुर: कामेश्वर यादव नहीं रहे। परवत्ती बुढिया काली समिति के कोषाध्यक्ष सह समाजसेवी कामेश्वर यादव 81 साल की उम्र में परवत्ती स्थित निवास स्थान पर ली अंतिम सांस। पांच महीने से लम्बी बीमारी से जूझ रहे थे। भागलपुर दंगे के परवत्ती कांड में थे आरोपी। हिन्दू शेर के रूप में है पहचान। अंतिम दर्शन के लिए लोगों का लगने लगा है भीड़।

वह 23 नवंबर, 2007 से जेल में बंद थे। हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद उन्हें रिहा किया गया था। करीब 200 बाइक और 50 से अधिक चारपहिया वाहनों के साथ उनका काफिला जेल गेट से सीधा बूढ़ानाथ मंदिर पहुंचा था।
कैंप जेल से निकल कर कामेश्वर ने खुली हवा में सांस लेने के बाद सबसे पहले धरती को छूकर प्रणाम किया था। फिर गेट से आगे बढ़े और वहां तैनात जेल के सारे सिपाहियों से हाथ मिलाया था।
दरअसल 24 अक्टूबर 1989 को रामशिला पूजन को लेकर भागलपुर दंगा शुरू हुआ था। जो एक महीने से ज्यादा रोज चला। एक हजार से ज्यादा जानें गई। इसी दौरान कामेश्वर यादव पर असानंनपुर के मोहम्मद कयूम की हत्या कर लाश गायब करने का आरोप कयूम के पिता नसीरुद्दीन ने लगाया और थाना कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई थी। यह बात 24 अक्टूबर 1989 की है। इसी मामले में पटना उच्चन्यायालय ने उन्हें रिहा किया था।

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