देश-दुनिया के करोड़ों लोग जिस घड़ी का पिछले 17 दिन से बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे थे, वह आखिरकार मंगलवार को आ ही गई। यह घड़ी थी उत्तराखंड के सिलक्यारा उत्तरकाशी स्थित निर्माणाधीन सुरंग में 12 नवंबर से फंसे 41 श्रमिकों के ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष और आतिशबाजी के बीच सकुशल बाहर आने की।

जिंदगी की एक जंग सुरंग में फंसे श्रमिक लड़ रहे थे और दूसरी सुरंग के बाहर देश-विदेश से आए तमाम विशेषज्ञ, जनप्रतिनिधि, श्रमिकों के स्वजन और स्थानीय ग्रामीण। जंग को मंजिल तक पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी थी।

आखिरकार जिंदगी की हुई जीत

लगभग 400 घंटे चली राहत एवं बचाव की जंग में आखिरकार जिंदगी की जीत हुई और सुरंग में कैद श्रमिकों ने खुली हवा में सांस ली। सुरंग से सकुशल बाहर आने के बाद श्रमिकों के चेहरे पर जो खुशी थी, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। भले ही जिंदगी की जंग श्रमिकों ने जीती थी। मगर विजय के भाव बाहर डटी मशीनरी के नायकों के चेहरे पर भी तैर रहे थे।

यह भाव थे बेहद जटिल अभियान के मंजिल तक पहुंचने की खुशी के, जिसके लिए हर कोई दुआ मांग रहा था। संभवत: यह देश का पहला ऐसा बड़ा अभियान है, जो इतनी लंबी अवधि तक चला और बावजूद इसके सभी पीड़ितों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

रैट माइनर्स ने मंजिल तक पहुंचाया

निकास सुरंग बना रही औगर मशीन का 46.9 मीटर हिस्सा 24 नवंबर की शाम ड्रिलिंग के दौरान फंस गया था। इसे काटकर निकालना ही एकमात्र विकल्प था। ऐसे में शेष नौ से 12 मीटर निकास सुरंग मैनुअल तैयार करने का निर्णय लिया गया। इस काम के लिए रैट माइनर्स की 28 सदस्यीय टीम को मोर्चे पर उतारा गया। 800 मिमी व्यास के पाइप के अंदर जाकर इस बेहद चुनौतीपूर्ण काम को रैट माइनर्स ने 24 घंटे के भीतर पूरा कर दिखाया। इस टीम ने सोमवार शाम से गैस कटर, प्लाज्मा कटर, लेजर कटर और हैंड ड्रिलर की मदद से लोहे को काटने व खोदाई का काम शुरू कर दिया था।


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