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‘जदयू मतलब नीतीशे कुमार’. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में किसी जमाने में यही बातें कही जाती हैं. उस समय नीतीश कुमार ही जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. अपने ऊपर लगे इन आरोपों के बाद ही नीतीश कुमार ने पार्टी की कमान अपने खास लोगों को देनी शुरू की. लेकिन समय चक्र ऐसा घूमा है कि एक बार फिर से नीतीश कुमार के हाथों ही पार्टी की कमान आ गई है. जदयू में मचे सियासी घमासान के बीच शुक्रवार को ललन सिंह ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो फिर से नीतीश कुमार ही पार्टी के अध्यक्ष बन गए।

ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या नीतीश कुमार के पास पार्टी की कमान सँभालने वाला कोई दूसरा नेता नहीं है. जदयू के इतिहास को देखें तो 30 अक्टूबर 2003 को जदयू का गठन हुआ था. तब समता पार्टी और लोक शक्ति जनता दल (शरद यादव द्वारा संचालित) के विलय के बाद एक नए दल के रूप में जदयू अस्तित्व में आई. शरद यादव, जॉर्ज फर्नाडिस और नीतीश कुमार जदयू के संस्थापक सदस्य रहे. पार्टी के तीनों बड़े चेहरों के आसपास ही लम्बे अरसे तक जदयू की सियासत होते रही. इस बीच जॉर्ज फर्नाडिस स्वास्थ्य सम्बंधी कारणों से जदयू दूर हो गए।

वहीं जदयू के गठन के बाद शरद यादव वर्ष 2004 से 2016 तक संस्थापक अध्यक्ष के रूप में काम करते रहे. लेकिन फिर से शरद यादव और नीतीश कुमार के रिश्ते मधुर नहीं रह गए. दोनों में जहाँ दूरियां बढ़ी, वहीं वर्ष 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले नीतीश कुमार ने जदयू पर अपनी पकड़ भी मजबूत कर ली. इन वर्षों में जदयू के एक मात्र चेहरे के रूप में नीतीश कुमार ही रहे. शरद यादव से दूरियां बढ़ी तो जदयू के अध्यक्ष कर रूप में नीतीश कुमार खुद कमान संभाल लिए. वे वर्ष 2016 से 2020 तक जदयू के अध्यक्ष रहे. वहीं शरद यादव न सिर्फ जदयू से बाहर किए गए बल्कि उनकी राज्यसभा की सदस्यता भी खत्म हो गई. अंत में जिस जदयू के वे संस्थापक सदस्य थे, उन्हें बेइज्जत होकर वहां से निकलना पड़ा. अंत में वे लालू यादव की पार्टी राजद के साथ हो लिए और उनका निधन भी राजद नेता में रूप में हुआ।

इस बीच जदयू को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने की बातें होने लगी. साथ ही जदयू मतलब नीतीश कुमार का जो ठप्पा लगा उससे पार्टी को दूर करने के लिए नीतीश कुमार ने वर्ष 2020 जदयू का अध्यक्ष बदलने का मन बनाया. उस समय नीतीश कुमार ने अपने सबसे करीबी रामचन्द्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह को जदयू अध्यक्ष बनाया. लेकिन आरसीपी के अध्यक्ष बनते ही उनकी कार्यशैली से नीतीश कुमार असहज होने लगे. स्थिति हुई आरसीपी वर्ष 2020 से 2021 तक ही अध्यक्ष रह पाए. नीतीश और आरसीपी में दूरी बढ़ी तो फिर से नीतीश ने अपने खास ललन सिंह को जुलाई 2021 में जदयू का अध्यक्ष बनाया. वहीं आरसीपी ने जदयू से अलग होकर भाजपा का दामन थाम लिया

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आरसीपी हों या ललन, ये भले ही जदयू के अध्यक्ष रहे लेकिन पार्टी की लगाम नीतीश कुमार ने अपने हाथों में ले रखी थी. कहा जाता है कि आरसीपी हों या ललन दोनों के लिए फैसलों पर अपनी बारीक़ नजर खुद नीतीश कुमार रखते. इसी का परिणाम हुआ कि कई बार जदयू के जो नेता आरसीपी हों या ललन के फैसलों से असहज हुए वे अपनी शिकायत लेकर सीएम नीतीश तक पहुंच जाते. कुछ फैसलों पर नीतीश कुमार वीटो पावर लगाकर उसे बदल भी देते. ऐसे में भले ही जदयू अध्यक्ष के रूप में ललन सिंह लेकिन पिछले वर्षों में यह बात आम रही कि जदयू मतलब नीतीश कुमार. अब ललन सिंह के इस्तीफे के बाद फिर से जदयू की कमान नीतीश कुमार के हाथों में है. यानी ‘जदयू मतलब नीतीशे कुमार’.


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