आज सोमवारी है. कहते हैं कि सप्ताह का एक दिन अर्थात सोमवार भगवान शिव को काफी प्रिय है. अगर सावन के सोमवारी की बात करें पूजा दिन भगवान भोलेनाथ को काफी प्रिय है. सोमवार के दिन जो लोग व्रत करते हैं और भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करते हैं उनको मनचाहा फल मिलता है. तुम्हारी की इस अवसर पर आज हम आपको भगवान भोलेनाथ की एक अनोखी कहानी सुनाने जा रहे हैं….

देशभर में कई ऐसे शिव मंदिर हैं, जिनका पौराणिक महत्व है। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। इस जिले के एक गांव त्रियुगी नारायण में शिवजी का प्राचीन मंदिर है। इसे त्रियुगी नारायण मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के संबंध में गांव में मान्यता प्रचलित है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। देवी की कठोर तपस्या से शिवजी प्रसन्न हो गए थे। इसके बाद इसी गांव में भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।

यहां एक कुंड में अखंड धूनी जलती रहती है। गांव के लोग कहते हैं इसी जगह पर शिवजी और पार्वती बैठे थे और ब्रह्माजी ने विवाह करवाया था। अग्नि कुंड के चारों तरफ भगवान ने फेरे लिए थे। मंदिर में भक्त लकड़‌ियां चढ़ाते हैं और भगवान का प्रसाद मानकर अग्नि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। ये राख घर के मंदिर में रखी जाती है।

शिव -पार्वती के विवाह में ब्रह्माजी पुरोहित बने थे। विवाह से पहले ब्रह्मदेव ने मंदिर में स्थित एक कुंड में स्‍नान किया था, जिसे ब्रह्मकुंड कहा जाता है। तीर्थ यात्री इस कुंड में स्नान करते हैं। यहां एक और कुंड है, जिसे विष्णु कुंड कहते हैं। शिव -पार्वती विवाह में विष्णु जी ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। कहते हैं विष्णु कुंड में स्नान करके भगवान विष्णु विवाह में शामिल हुए थे।

मंदिर में एक स्तंभ भी है। इस संबंध में मान्यता है कि भगवान श‌िव को व‌िवाह में एक गाय मिली थी। यहां स्थित स्तंभ पर ही उस गाय को बांधा गया था। सबसे पहले आपको रुद्रप्रयाग पहुंचना होगा। इस जिले तक पहुंचने के लिए देशभर से कई साधन आसानी से मिल जाते हैं। इसके बाद गौरीकुंड पहुंचना होगा। गौरीकुंड से गुप्तकाशी की तरफ सोनप्रयाग आता है। यहां से त्रियुगी नारायण मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।


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