वेद मंत्रों के सस्वर उच्चारण के बीच भाव विभोर यजमान डा. अनिल मिश्र व उनकी पत्नी ऊषा मिश्र तथा हर क्रिया के बाद गर्भगृह में उपस्थित लोगों का करबद्ध जय सियराम का उद्घोष। प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के तीसरे दिन बुधवार को अपने गर्भगृह में विराज चुके रामलला के विग्रह का अधिवास भाव विभोर करने वाला रहा।

प्रतिमा को 21 जनवरी तक जीवनदायी तत्वों से सुवासित कराया जाएगा, जिसका क्रम गुरुवार से प्रारंभ हो गया। गर्भगृह में भगवान चल के साथ अचल स्वरूप में भी विराजमान होंगे। दोनों प्रतिमाएं बुधवार को ही परिसर में पहुंच चुकी थीं। श्यामवर्णी अचल प्रतिमा दोपहर साढ़े 12 बजे गर्भगृह में स्थापना की गई। इसी के साथ दोनों ही प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा का संस्कार आरंभ हो गया।

करीब 20 प्रकार के पूजन के उपरांत गुरुवार को भगवान के अधिवास का क्रम आरंभ हुआ, जिसकी शुरुआत वेदमंत्रों के उच्चारण से मंगलमयी हुए वातावरण में यजमान डा. अनिल मिश्र व उनकी पत्नी ऊषा मिश्र ने शुभ मुहूर्त दोपहर एक बज कर 20 मिनट पर संकल्प से की।

अधिवास से पहले आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ व आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में भगवान गणेश और माता अंबिका का पूजन हुआ। यह क्रम वरुण, मातृ पूजन, पुण्याहवाचन से आगे बढ़ा। आयुष्य मंत्र का जाप किया गया।

नंदी श्राद्ध, आचार्यादिऋत्विग्वरण, मधुपर्कपूजन, मंडप प्रवेश, दिग्दर्शन संस्कार हुआ। मंडप वास्तु पूजन, वास्तु बलिदान, मंडप सूत्रवेष्टन, दुग्धधारा, जलधाराकरण, षोडष स्तंभ पूजन, तोरण, द्वार, ध्वज, आयुध, पताका, दिक्पाल, द्वारपाल आदि पूजन किया गया। इसके उपरांत जलाधिवास हुआ। अधिवास के उपरांत भगवान पालकी में विराजमान हो भ्रमण पर निकले।

सुबह नौ बजे अरणि मंथन से प्रकट होगी अग्नि

शुक्रवार को करीब 20 संस्कार होंगे। सुबह नौ बजे अरणि मंथन से अग्नि प्रकट की जाएगी। इससे पूर्व गणपति आदि स्थापित देवताओं का पूजन होगा। अरणि मंथन से प्रकट हुई अग्नि की कुंड में स्थापना की जाएगी। वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुंडपूजन, पंच भू संस्कार होगा।

इसके बाद ग्रहस्थापन, असंख्यात रुद्रपीठस्थापन, प्रधान देवता स्थापन, राजाराम-भद्र-श्रीरामयंत्र-बीठदेवता-अंग देवता-आवरण देवता-महापूजा, वारुण मंडल, योगिनी मंडल स्थापन, क्षेत्रपाल मंडल स्थापन, ग्रहहोम, स्थाप्यदेव होम, प्रासाद वास्तु शांति, धान्याधिवास एवं सायंकालिक पूजन एवं आरती होगी।

क्या होता है अधिवास

प्राण प्रतिष्ठा के पहले मूर्तियों का अधिवास कराया जाता है। अनुष्ठान के अनुसार 12 से 18 अधिवास होते हैं। उदाहरण के लिए जलधिवास के तहत मूर्ति को जल से भरे विशाल पात्रों में शयन कराया जाता है।

इसी तरह दिन में गेहूं, धान आदि अन्न के भंडार में ढककर अन्नाधिवास होता है। औषधियों में रखकर औषधिवास होता है। शैयाधिवास में उन्हें शैया पर शयन कराया जाता है।

अरणि मंथन यंत्र

अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए हो रहे अनुष्ठान में यज्ञ कुंडों में अग्नि काशी में बनी अरणि मंथन यंत्र से प्रकट होगी।वैदिक यज्ञों में अग्नि प्राकट्य के लिए काठ के बने अरणि मंथन यंत्र का प्रयोग करते हैं। इसके मुख्य दो भाग अरणि या अधराणि और उत्तराणि को मिलाकर कुल चार अंग होते हैं। यह शमीगर्भ अश्वत्य यानी शमी के काष्ठ से बनाया जाता है। अधराणि नीचे होती है और इसमें छिद्र होता है।

इस छेद पर उत्तरारणि खड़ी करके रस्सों से मथानी के समान मथा जाता है। मंथन में उपयोग में आने वाली डोरी को नेत्र कहते हैं। अधराणि में बने छेद के नीचे कुश या कपास रख देते हैं जिसमें घर्षण से उत्पन्न आग पकड़ लेती है। इसके मथने के समय वैदिक मंत्र पढ़ते हैं और ऋत्विक लोग ही इसके मथने आदि का काम करते हैं।


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