कहते हैं हर सफ़ल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है. भारतीय ‘बैचलर्स’ को अगर कोई ‘मिठाई बांटने वाली’ सफ़लता मिल जाए तो वो अपनी मां-बहन, घरवाले, रिश्तेदार, दोस्त, टीचर सभी को श्रेय देंगे लेकिन प्रेमिका या गर्लफ़्रेंड को नहीं देंगे. हां-हां सेम ‘बैचलरेट्स’ के लिए भी अप्लाई होता है.

आज भी हम भारतीय खुलकर गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड पर खुलकर बात करने या उनके साथ के लिए उनको एप्रिशिएट करने से कतराते हैं. कुछ साल पहले जब एक UPSC टॉपर ने इंटरव्यू के दौरान अपनी गर्लफ़्रेंड का ज़िक्र कर दिया तो सभी को झटका लगा.

राजस्थान, जयपुर के रहने वाले हैं कनिष्क कटारिया. कोटा स्थित सेंट पॉल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल से उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने IIT JEE की परीक्षा दी और ऑल इंडिया रैंक 44 रैंक लाकर पूरे परिवार का मान बढ़ा दिया. IIT Bombay से उन्होंने कंप्यूटर साइंस में B.Tech की डिग्री हासिल की. नामी संस्था से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने नौकरी भी मिल गई.

कई भारतीय अच्छी जीवनशैली और सफल करियर के लिए विदेश चले जाते हैं, कनिष्क भी उन्हीं में से एक थे. सैमसंग में वे बतौर सॉफ़्टवेयर इंजीनियर काम कर रहे थे और उनकी सालाना सैलरी 1 करोड़ रुपये थी. कनिष्क को वतन की मिट्टी ने पुकारा और वो विदेश की आरामदायक नौकरी छोड़ कर स्वेदश लौट आए. बेंगलुरू में उन्होंने बतौर डेटा साइंटिस्ट एक कंपनी में काम शुरू किया.

कनिष्क के पिता संवरमल शर्मा खुद IAS अधिकारी रह चुके हैं और उनकी इच्छा थी कि बेटा भी देश की सेवा करे. कनिष्क ने कभी इस बारे में सीरियसली नहीं सोचा था लेकिन घर के माहौल से वो कहीं न कहीं प्रभावित थे.

बेंगलुरू में काम करने के दौरान ही वो घंटों ट्रैफिक में फंसे रहते थे और उन्हें विदेश की सड़कें और ट्रैफिक मैनेजमेंट याद आता था. उनके मन में तरह-तरह के ख्याल आते और उन्हें लगता कि देश की बड़ी-बड़ी समस्याओं को छोटे-छोटे फेर-बदल करके भी सुलझाया जा सकता है. ट्रैफिक में अटके हुए सिस्टम को कोसना तो आसान है लेकिन कनिष्क बदलाव लाने की ठान चुके थे. उन्होंने सिस्टम का हिस्सा बनकर सिस्टम में बदलाव लाने का निर्णय लिया.

पिता ने बिना बताए फॉर्म भर दिया था

कनिष्क ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि विदेश जाने से पहले उन्होंने UPSC की परीक्षा दी थी. उनके पिता ने बिना बताए उनका फॉर्म भर दिया था. कनिष्क का GS कमज़ोर था और उनका कहना है कि वो परीक्षा हॉल में सोकर वापस आ गए थे. इसी वजह से वो इस अटेम्पट को पहला अटेम्पट नहीं मानते.

सिस्टम में रहते हुए सिस्टम में बदलाव लाना है, इस सोच के साथ कनिष्क आगे बढ़े 1.5-2 साल जमकर तैयारी की और UPSC 2018 में पहली रैंक हिसाल कर ली.


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