किसी ने सच ही कहा है की लहरों से डर कर नैया पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. बिहार की सरिता पर यह कहावत एकदम सटीक बैठता है. सरिता बिहार के गया की रहने वाली है और अब अफसर बन चुकी है. परिवार में जश्न का माहौल है. मिठाइयां बांटी जा रही है. आस पड़ोस के लोग बधाई दे रहे हैं. सरिता के माता-पिता कहते हैं कि बिटिया सरकारी नौकरी के लिए जमकर मेहनत करती थी लेकिन किस्मत बार-बार धोखा दे जाती थी. वह 11 बार सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षा दे चुकी है जिसमें वह फेल होती रही. लेकिन अब किस्मत ने उसका साथ दिया।

सरिता कहती है की शादी से पहले मैं मायके में पढ़ाई करती थी और ससुराल आने के बाद भी जी जान लगाकर पढ़ाई करती रही. सरिता कहती है कि मैं बिहार पुलिस, एनटीपीसी, आरपीएफ, सीआरपीएफ सहित कई अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं में बैठकर किस्मत आजमाने का फैसला किया था. लेकिन बार-बार असफल होती रही। इसी बीच रेलवे में नौकरी लग गई लेकिन फिर भी मैं जमकर मेहनत करती रही. अब स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के जरिए सरिता का सिलेक्शन सचिवालय में अफसर के तौर पर हुआ है।

सरिता कहती है कि मैं मूल रूप से गया के भीतरी गांव का रहने वाला रहने वाली हूं. सचिवालय में मेरा सिलेक्शन सहायक प्रशाखा पदाधिकारी के रूप में हुआ है.सरिता की माने तो वह बचपन से ही सरकारी नौकरी पाने के लिए और अफसर बनने का सपना देखा करती थी।शादी के बाद परिवार अच्छा मिला और पति के साथ-साथ ससुर ने भी पढ़ने में साथ दिया।

सरिता कहती है की पढ़ाई करने के लिए गांव से 5 किलोमीटर दूर में बाकी बाजार जाया करता था.1 साल तक गया शहर में रहकर पढ़ाई करती रही. ईस्टर्न रेलवे में नौकरी मिलने के बाद भी मुझे भरोसा था कि मैं अगर जमकर तैयारी करूंगी तो अफसर जरूर बन जाऊंगी. सरिता कहती है कि मेरे पति भी रेलवे में नौकरी करते हैं।


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