1.5 लाख से 50 करोड़ तक का सफ़र, जैविक खेती के ज़रिए किसानों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं राजस्थान के योगेश :

योगेश के परिवार में ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी करते हैं। उनके पिता नगर पालिका में मुख्य अधिकारी के पद पर हैं और उनकी हमेशा से चाहत थी कि उनके बेटे को एक सम्मानजनक डिग्री और एक सुरक्षित नौकरी मिले। आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण योगेश ने ऐसा ही किया। कृषि विज्ञान में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, उन्होंने जैविक खेती में डिप्लोमा के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। साल 2006 में 8000 रुपए की मासिक नौकरी के साथ उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि, 4 साल तक काम करने के बावजूद, उनका वेतन केवल 12,000 रुपये मासिक ही हो पाया, इससे योगेश निराश हो गए और 2010 में उन्होंने नौकरी छोड़ जैविक खेती का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया।

बातचीत में योगेश ने बताया कि जैैैविक खेेती में कदम रखने के पीछे लोगों को मधुमेह, कैंसर जैसी बीमारियों से सुरक्षित करना भी एक विशेष वज़ह रही। पश्चिमी देशों में लोग पहले ही जैविक फल-सब्जियों का सेवन करना शुरू कर दिए हैं। भारत में इसका प्रचलन हाल ही में शुरू हुआ है। हालांकि, कोरोना महामारी के बाद लोग जैविक भोजन पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।

योगेश का एकमात्र उद्देश्य किसानों को जैविक खाद्य उगाने में मदद करना था। इस योजना के तहत वह किसानों को उच्च दाम देकर जैविक फल-सब्जियों को खरीदते और फिर उन्हें बड़ी कंपनियों को बेचते जो प्रीमियम कीमतों पर जैविक खाद्य खरीदना चाहती हैं। इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने सात किसानों के साथ मिलकर जीरे की जैविक खेती शुरू की। हालाँकि, अपने व्यावहारिक अनुभव की कमी के कारण, योगेश ने खेतों में मिट्टी को पूरी तरह से रसायनों से मुक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया और इससे पहली फसल बेकार हो गई।


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