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बिहार के हजारों शिक्षकों की नौकरी बचाने सुप्रीम कोर्ट जाएगी नीतीश सरकार, पटना हाई कोर्ट ने बीएड डिग्रीधारी प्राथमिक टीचरों को बताया है अवैध

बिहार के हजारों नियोजित शिक्षकों की नौकरी बचाने के लिए नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. पटना हाई कोर्ट ने पिछले महीने 6 दिसंबर 2023 को एक आदेश दिया था. इसमें बीएड डिग्री पर नियोजित शिक्षकों की छठे चरण में नियुक्ति हुई थी. ऐसे शिक्षक पहली से पांचवी कक्षा तक बच्चों को पढाते हैं. लेकिन 6 दिसम्बर के हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया कि बिहार में प्राइमरी स्कूलों में बीएड पास डिग्रीधारी शिक्षक जॉइनिंग के योग्य नहीं होंगे।

पटना हाई कोर्ट के इस आदेश से हजारों शिक्षकों का भविष्य अधर में लटक गया है. इसे लेकर शिक्षकों में निराशा व्याप्त है और वे नीतीश सरकार से इस मसले पर उनकी नौकरी बचाने की अपील कर रहे थे. अब इसी क्रम में बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है. इसके लिए सरकार के महाधिवक्ता पीके शाही ने शिक्षा विभाग को पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का सुझाव दिया है.सरकार ये तर्क देगी कि छठे चरण की शिक्षक नियुक्ति प्रकिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही पूरी हो गयी थी.इसलिए इन पर ये आदेश लागू नहीं किया जाए।

दरअसल, छठे चरण में नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति करीब दो साल पहले हुई थी. वे पिछले दो साल से सेवारत भी हैं. एक अनुमान के मुताबिक ऐसे शिक्षकों की संख्या करीब 20 हजार से ज्यादा है. इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक हैं जिनकी नौकरी की अधिकतम आयु सीमा भी अब पार कर चुकी है. यानी वे अपनी श्रेणी में अब फिर से नौकरी के लिए आवेदन भी नहीं कर सकते हैं. बिहार सरकार ने शिक्षकों के भविष्य को बचाने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने का फैसला किया है।

 

इस वर्ष में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुए 49 हजार से अधिक मामले, इतने मामलों में सुनाया गया फैसला

भारत के न्याय तंत्र में 3 करोड़ से अधिक मामले फैसले का इंतजार कर रहे हैं। कई मामले तो आजादी के समय से अदालतों में दाखिल और फैसले की बाह जोट रहे हैं। भारतीय न्याय तंत्र के बारे में कहा जाता है कि एक बार आपका मामला कोर्ट-कचहरी में पहुंच गया तो आप जिन्दगी भर यहां के चक्कर लगाएंगे। हालांकि वर्तमान समय में यह तस्वीर बदलती हुई दिख रही है। इसका एक नमूना साल 2023 में देखने को मिला है।

इस साल कई अहम मामलों में सुनाया गया फैसला

साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 52,191 मामलों का निपटारा किया है, जिनमें पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधान खत्म करने के केंद्र के फैसले को मंजूरी देने वाली ऐतिहासिक व्यवस्था तथा समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इनकार करना शामिल है। शीर्ष अदालत द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, निपटाए गए मामलों की संख्या पूरे वर्ष के दौरान इसकी रजिस्ट्री में दायर किए गए 49,191 मामलों से 3,000 अधिक रही।

साल में दर्ज मामलों से अधिक हुए निपटारे

न्यायालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “एक और उपलब्धि में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक जनवरी, 2023 से 15 दिसंबर, 2023 तक 52,191 मामलों का निपटारा किया। इनमें 45,642 विविध मामले और लगभग 6,549 नियमित मामले शामिल हैं।’’ विज्ञप्ति में कहा गया है ‘‘वर्ष 2023 में कुल 49,191 मामले पंजीकृत हुए और 52,191 का निपटारा किया गया। इससे पता चलता है कि इस वर्ष उच्चतम न्यायालय ने 2023 के दौरान दर्ज मामलों की तुलना में अधिक मामलों का निपटान किया।’’

आईसीएमआईएस से हुआ बड़ा बदलाव

वर्ष 2017 में आईसीएमआईएस (इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम) लागू होने के बाद से, 2023 में सर्वाधिक मामलों का निपटारा किया गया है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने मामलों को दाखिल करने और सूचीबद्ध करने के लिए आवश्यक समय-सीमा को दुरुस्त किया है। विज्ञप्ति में कहा गया है ‘‘उनके कार्यकाल में, मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में उल्लेखनीय बदलाव आया। मामले के सत्यापन के बाद सूचीबद्ध होने तथा दाखिल करने तक का समय 10 दिन से घटाकर सात से पांच दिन कर दिया गया है।’’

इसमें कहा गया है ‘‘इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने मामलों की अधिक संख्या को देखते हुए विभिन्न कदम उठाए जिससे कानूनी विवादों के समाधान में तेजी आई। मामलों की विशिष्ट श्रेणियों को देखते हुए निपटारे के लिए विशेष पीठों का गठन किया गया, जिससे अधिक विशिष्ट और कुशल न्याय प्रक्रिया को बढ़ावा मिला।’’

भारत के न्याय तंत्र में 3 करोड़ से अधिक मामले फैसले का इंतजार कर रहे हैं। कई मामले तो आजादी के समय से अदालतों में दाखिल और फैसले की बाह जोट रहे हैं। भारतीय न्याय तंत्र के बारे में कहा जाता है कि एक बार आपका मामला कोर्ट-कचहरी में पहुंच गया तो आप जिन्दगी भर यहां के चक्कर लगाएंगे। हालांकि वर्तमान समय में यह तस्वीर बदलती हुई दिख रही है। इसका एक नमूना साल 2023 में देखने को मिला है।

इस साल कई अहम मामलों में सुनाया गया फैसला
साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 52,191 मामलों का निपटारा किया है, जिनमें पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधान खत्म करने के केंद्र के फैसले को मंजूरी देने वाली ऐतिहासिक व्यवस्था तथा समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इनकार करना शामिल है। शीर्ष अदालत द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, निपटाए गए मामलों की संख्या पूरे वर्ष के दौरान इसकी रजिस्ट्री में दायर किए गए 49,191 मामलों से 3,000 अधिक रही।

देश की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक केस पेंडिंग, जानें सुप्रीम कोर्ट का भी आंकड़ा; पढ़े पूरी रिपोर्ट

संसद में जारी शीतकालीन सत्र के दौरान देश की अदालतों में लंबित मामलों की बारे में जानकारी दी गई है। लोकसभा में जारी किए गए आंकड़े हैरान करने वाले हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया है कि एक दिसंबर तक देश की विभिन्न अदालतों में 5,08,85,856 मामले लंबित थे। इसके साथ ही कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी लंबित मामलों के भी आंकड़े बताए हैं। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

किन अदालतों में कितने मामले लंबित

शुक्रवार को लोकसभा में जानकारी देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित 5 करोड़ से अधिक मामलों में सभी 25 उच्च न्यायालयों में लंबित 61 लाख से अधिक मामले शामिल हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित कुल  80,000 मामले शामिल हैं। कानून मंत्री मेघवाल ने बताया है कि देश के जिला और अधीनस्थ अदालतों में 4.46 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।

न्यायालय में कितने जज स्वीकृत

कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने लोकसभा में बताया कि बताया कि भारतीय न्यायपालिका में न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या 26,568 है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 34 है, वहीं उच्च न्यायालयों में यह आंकड़ा 1,114 न्यायाधीशों का है। जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 25,420 है।

रिक्तियों के संबंध में जानकारी सामने आई

कानून मंत्री ने कहा है कि उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 123 प्रस्ताव आए हैं जिनमें से 12 दिसंबर तक 81 प्रस्ताव सरकार के स्तर पर प्रक्रिया के विभिन्न चरण में हैं। वहीं, शेष 42 प्रस्ताव उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के विचाराधीन हैं। कानून मंत्री ने आगे बताया कि 201 रिक्तियों के संबंध में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम से सिफारिशें अभी नहीं मिली हैं।

निखिल गुप्ता ने प्रत्यर्पण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, पन्नू की हत्या की साजिश के लगे थे आरोप

खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता ने अपने परिवार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। निखिल गुप्ता ने अपनी गिरफ्तारी और चेक गणराज्य में चल रही प्रत्यर्पण कार्यवाही के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। निखिल की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यह विदेश मंत्रालय के लिए संवेदनशील मामला है। यह उन्हें तय करना है।

4 जनवरी को होगी अगली सुनवाई

मामले की सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि हमें देर रात फाइल मिली। हम विवरण में नहीं गये हैं। मामले की अगली अगली सुनवाई 4 जनवरी को होगी। याचिका के माध्यम से निखिल ने सुप्रीम कोर्ट से अपील किया है कि इस मामले में भारत सरकार को उचित आदेश दें।

अभी चेक गणराज्य की जेल में बंद है निखिल

बता दें कि अमेरिका ने भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता पर गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश का आरोप लगाया है। इस मामले में अमेरिका की कोर्ट में केस भी दायर किया गया है। निखिल वर्तमान समय में चेक गणराज्य में एक जेल में बंद है।

एफबीआई कर रही मामले की जांच

करीब एक महीने पहले अमेरिका ने गुरपतवंत सिंह पन्नू को अपनी धरती पर मारने की एक साजिश को नाकाम करने का दावा किया था। अमेरिकी अधिकारियों ने इस संबंध में नयी दिल्ली के समक्ष चिंता जताई है कि संभवत: भारत सरकार को इस साजिश की जानकारी हो सकती है। अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई) इस मामले की जांच कर रही है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक से किया इनकार, जानें पूरा मामला

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह परिसर के कोर्ट सर्वे के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह परिसर के कोर्ट सर्वे की अनुमति दी थी। इसी संदर्भ में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाईकोर्ट के सर्वे के आदेश पर कोई रोक नहीं लगा सकता। हां, सर्वे में अगर कुछ बातें निकलकर आती हैं तो फिर उसपर विचार किया जा सकता है।

18 दिसंबर को कोर्ट कमिश्नर सर्वे की रूपरेखा तय होगी

इससे पहले कल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए अदालत की निगरानी में एडवोकेट कमिश्नर या कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की मांग करने वाली याचिका मंजूर कर ली। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 18 दिसंबर तय की है। 18 दिसंबर को कोर्ट कमिश्नर में कितने मेंबर होंगे, किस तरह सर्वे किया जाएगा, इसकी रूप रेखा तय होगी।

विष्णु शंकर जैन समेत सात याचिकाकर्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह याचिका भगवान श्री कृष्ण विराजमान और सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन के जरिए दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया है कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के मुताबिक, इस याचिका में कहा गया है कि वहां कमल के आकार का एक स्तंभ है जोकि हिंदू मंदिरों की एक विशेषता है। इसमें यह भी कहा गया है कि वहां शेषनाग की एक प्रतिकृति है जो हिंदू देवताओं में से एक हैं और जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी। याचिका में यह भी बताया गया कि मस्जिद के स्तंभ के आधार पर हिंदू धार्मिक प्रतीक हैं और नक्काशी में ये साफ दिखते हैं।

कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि इस अदालत द्वारा आयुक्त की नियुक्ति के लिए सुनवाई में प्रतिवादी हिस्सा ले सकते हैं। इसके अलावा, यदि वे आयोग की रिपोर्ट से पीड़ित महसूस करते हैं तो उनके पास उस रिपोर्ट के खिलाफ आपत्ति दाखिल करने का अवसर होगा।” अदालत ने आगे कहा, “आयुक्त द्वारा दाखिल रिपोर्ट हमेशा पक्षकारों के साक्ष्य से संबंधित होती है और यह साक्ष्य में स्वीकार्य है। कोर्ट कमिश्नर  सक्षम गवाह होते हैं और किसी भी पक्ष की इच्छा पर उन्हें सुनवाई के दौरान साक्ष्य के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरे पक्ष के पास जिरह करने का हमेशा एक अवसर होगा।” अदालत ने कहा, “यह भी ध्यान रखना होगा कि तीन अधिवक्ताओं के पैनल वाले आयोग की नियुक्ति से किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा। कोर्ट कमिश्नर  की रिपोर्ट इस मामले की मेरिट को प्रभावित नहीं करती।

आयोग के क्रियान्वयन के दौरान परिसर की पवित्रता सख्ती से बनाए रखने का निर्देश दिया जा सकता है।” अदालत ने आगे कहा, “यह भी निर्देश दिया जा सकता है कि किसी भी तरीके से ढांचे को कोई नुकसान ना पहुंचे। आयोग उस संपत्ति की वास्तविक स्थिति के आधार पर अपनी निष्पक्ष रिपोर्ट सौंपने को बाध्य है। वादी और प्रतिवादी के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं के पैनल के साथ रहकर उनकी मदद कर सकते हैं जिससे जगह की सही स्थिति इस अदालत के समक्ष लाई जा सके।” इससे पूर्व, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से इस आवेदन काविरोध किया गया था ।

अभिनेत्री जयाप्रदा की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, जानिए क्या है वजह

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस मामले में अभिनेत्री और पूर्व लोकसभा सांसद जयाप्रदा की सजा पर रोक लगा दी, जिसमें उन्हें एक सिनेमा थिएटर के कर्मचारियों का कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) का बकाया भुगतान नहीं करने पर छह महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई गई थी। उनके द्वारा 18 वर्षों से अधिक समय से।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने जयाप्रदा द्वारा दायर अपील पर ईएसआईसी को नोटिस जारी किया। जयाप्रदा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर ने दावा किया कि चेन्नई की निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि आदेश पेटेंट संबंधी कमजोरियों से ग्रस्त है।

शीर्ष अदालत ने पहले जयाप्रदा को मामले में आत्मसमर्पण करने से छूट दे दी थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रधान सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिन्होंने अभिनेत्री और उनके सहयोगियों, जो अब बंद हो चुके जयाप्रदा सिनेमा थिएटर के मालिक थे, पर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया था।

जयाप्रदा सिनेमा की पार्टनर जयाप्रदा को एग्मोर में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने छह महीने की कैद की सजा सुनाई थी। यह फैसला थिएटर के कर्मचारियों की याचिका पर सुनाया गया, जिन्होंने शिकायत की थी कि अभिनेता ने उनके ईएसआई योगदान का भुगतान नहीं किया है। पिछले 10 वर्षों से बंद पड़े थिएटर के कर्मचारियों ने कहा कि प्रबंधन उनका ईएसआई योगदान काट रहा है, लेकिन राज्य बीमा निगम के पास पैसा जमा नहीं कर रहा है।

आर्टिकल 370 पर फैसले के बाद विपक्षी गठबंधनो के बदले सुर, SC के निर्णय को बताया स्वागत योग्य

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को सही बताते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ऐसे में पूरे देश में जो संविधान लागू है वहीं संविधान जम्मू-कश्मीर में भी चलेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बीजेपी ने तो स्वागत किया ही है, विपक्षी गठबंधनो ने भी फैसले का स्वागत किया है जो कल तक नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को गलत बताते थे।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के एमएलसी नीरज कुमार ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर जेडीयू को कोई भी राजनीतिक टिप्पणी नहीं करनी है लेकिन केंद्र सरकार से उम्मीद जरूर है कि संविधान के अनुच्छेद 371 ए से लेकर जेड तक जिसमें गुजरात और महाराष्ट्र को विशेष श्रेणी का दर्जा हासिल है, इसपर भी केंद्र सरकार को अपना नजरिया स्पष्ट करना चाहिए।

वहीं आरजेडी ने भी कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की बात कही है। बिहार सरकार में आरजेडी कोटे के मंत्री आलोक मेहता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी की कहीं कोई बात ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आरजेडी सम्मान करती है। अगर सुप्रीम कोर्ट से ऊपर भी कोई कोर्ट होती तो उसपर बात होती लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस देश की शीर्ष अदालत है। ऐसे में कोर्ट के हर फैसले को सभी को मानना है।

वहीं बिहार कांग्रेस ने भी धारा 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा कि धारा 370 के कई प्रावधानों को पहले की कांग्रेस सरकारों ने ही हटा दिया था। अब कुछ प्रावधानों को नरेंद्र मोदी सरकार ने भी हटा दिया है। इसके खिलाफ जो लोग कोर्ट गए थे वे क्या सोंचकर गए थे वही बता सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है और देशहित में है। निश्चित तौर पर पूर्व की और अभी की सरकार ने इस मामले में अच्छा कदम उठाया है।

Article 370 हटाने पर सुप्रीम कोर्ट की लगी मुहर, फ़ैसले पर किसने क्या कहा?

Supreme Court Verdict On Article 370

धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद था जो 2019 में समाप्त हो गया। यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर को विशेष रूप से विशेष राजनीतिक स्थिति प्रदान करता था, लेकिन उसका समाप्त होना एक सामान्यीकृतता की प्रक्रिया का हिस्सा था।

सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से हटाए गए अनुच्छेद 370 पर सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. इस दौरान SC ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटने पर भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया मजबूत हुई है. कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 370 हटाना संवैधानिक रूप से वैध है.

सुनवाई के दौरान सीजीआई ने कहा कि हमें सॉलिसीटर जनरल ने बताया कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिया जाएगा. वहीं लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र रहेगा. CJI ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि चुनाव आयोग नए परिसीमन के आधार पर 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाए. राज्य का दर्जा भी जितना जल्द संभव हो, बहाल किया जाए.

बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. उन्होंने इससे पहले 16 दिनों की बहस के बाद 5 सितंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.

कोर्ट ने कहा कि जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय समझौते पर दस्तखत किए, जम्म-कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई. वह भारत के तहत हो गया. इससे साफ है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से ऊंचा है.

कोर्ट में किसकी तरफ से किसने दी दलील

कोर्ट में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले की पैरवी की. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश की.

वहीं पीएम मोदी ने शीर्ष अदालत के फैसले के बाद ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला ऐतिहासिक है और संवैधानिक रूप से 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद द्वारा लिए गए निर्णय को बरकरार रखने वाला है. उन्होंने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है. न्यायालय ने अपने गहन विवेक से एकता के उस सार को मजबूत किया है, जिसे हम भारतीय होने के नाते सबसे ऊपर मानते हैं.

शराब नीति मामले में AAP सांसद संजय सिंह की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कल करेगा सुनवाई

कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड के खिलाफ वाली याचिका पर सोमवार (11 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, जस्टिस संजीव खन्ना और एस एनवी भट्टी की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को नोटिस जारी कर केंद्र और ईडी से संजय सिंह की ओर से दायर याचिका पर जवाब देने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने आप नेता को संबंधित क्षेत्राधिकार वाली अदालत के समक्ष नियमित जमानत याचिका दाखिल करने की छूट दी थी.

इस बीच, राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश एमके नागपाल ने शनिवार (9 दिसंबर) को आप सांसद संजय सिंह की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी और अगला सत्र 12 दिसंबर के लिए निर्धारित किया.

संजय सिंह के खिलाफ ईडी का आरोप पत्र

इससे पहले, ईडी ने संजय सिंह के खिलाफ 60 पेज का पूरक आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह साजिश, मनी लॉन्ड्रिंग और आरोपियों की मदद करने में शामिल थे. केंद्रीय एजेंसी ने 4 अक्टूबर को नॉर्थ एवेन्यू इलाके में संजय सिंह के आवास पर तलाशी लेने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. इस मामले में पूर्व उपमुख्यमंत्री और आप नेता मनीष सिसौदिया के बाद यह दूसरी बड़ी गिरफ्तारी थी.

ईडी ने संजय सिंह की जमानत का किया था विरोध

वहीं शनिवार (9 दिसंबर) को ईडी ने संजय सिंह की जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया था. ईडी ने राउज एवेन्यू कोर्ट से कहा था, “संजय सिंह के खिलाफ जांच जारी है, इसलिए उन्हें हिरासत में रखा गया है. जमानत देने से जांच में बाधा आ सकती है, जिससे संभावित रूप से सबूतों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है और गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है.”