22 जनवरी को अयोध्या के नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। यह दिन इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। इस दिन को देखने एक लिए हजारों रामभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। हजारों लोगों ने अपना घर त्याग कर दिया। लाठियां खाई, कोर्ट में केस लड़ा। तब जाकर यह दिन आया है। 1980 के बाद राम मंदिर आंदोलन कुछ हल्का सा पड़ गया था, लेकिन इसके बाद साल 1990 में भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अलग ही अलख जगा दी। उन्होंने इसके लिए गुजरात के सोमनाथ से यात्रा निकाली।

इस यात्रा को 33 साल पूरे हो गए हैं। प्राण प्रतिष्ठा भी अब दूर नहीं है। इससे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने मासिक पत्रि‍का ‘राष्‍ट्रधर्म’ से बातचीत की। इसमें उन्होंने कहा कि वे श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा देखने के लिये आतुर हैं। उन्होंने कहा कि इस पल को लाने, रामलला का भव्‍य मंदिर बनवाने और उनका संकल्‍प पूर्ण कराने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र हैं।

‘मुझे नहीं पता था कि यात्रा आंदोलन में बदल जाएगी’

लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथयात्रा के अविस्‍मरणीय पल को याद करते हुये कहते हैं कि रथयात्रा को आज करीब 33 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। 25 सितंबर, 1990 की सुबह रथयात्रा आरम्‍भ करते समय हमें यह नहीं पता था कि प्रभु राम की जिस आस्‍था से प्रेरित होकर यह यात्रा आरम्‍भ की जा रही है, वह देश में आंदोलन का रूप ले लेगा। उस समय वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके सहायक थे। वे पूरी रथयात्रा में उनके साथ ही रहे। तब वे ज्‍यादा चर्चि‍त नहीं थे। मगर राम ने अपने अनन्‍य भक्‍त को उस समय ही उनके मंदिर के जीर्णोद्धार के लिये चुन लिया था। आडवाणी जी स्‍वयं भी ऐसा मानते हैं कि उनकी राजनीतिक यात्रा में अयोध्‍या आंदोलन सबसे निर्णायक परिवर्तनकारी घटना थी, जिसने उन्‍हें भारत को पुन: जानने और इस प्रक्रि‍या में अपने आपको भी फिर से समझने का अवसर दिया है।

‘रथ आगे बढ़ रहा था और उसके साथ ही जनसैलाब भी जुड़ता गया’

अपनी यात्रा सम्‍बंधी संघर्षगाथा के संदर्भ में वे कहते हैं कि रथ आगे बढ़ रहा था और उसके साथ ही जनसैलाब भी जुड़ता जा रहा था। जनसमर्थन गुजरात से बढ़ता हुआ महाराष्‍ट्र में व्‍यापक हो गया और उसके बाद के सभी राज्‍यों में भी उत्‍तरोत्‍तर बढ़ता जा रहा था। यात्रा में ‘जय श्रीराम’ व ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’ के गगनभेदी नारे गूंजते रहते थे। उन्‍होंने कहा, ‘रथयात्रा के समय ऐसे कई अनुभव हुये जिन्‍होंने मेरे जीवन को प्रभावित किया। सुदूर गांव के अंजान ग्रामीण रथ देखकर भाव-विभोर होकर मेरे पास आते। वे प्रणाम करते। राम का जयकारा करते और चले जाते।’ यह इस बात का संदेश था कि पूरे देश में राम मंदिर का स्‍वप्‍न देखने वाले बहुतेरे हैं। वे अपनी आस्‍था को जबरन छि‍पाकर जी रहे थे। 22 जनवरी, 2024 को मंदिर की प्राण प्रतिष्‍ठा के साथ ही उन ग्रामीणों की दबी हुई अभिलाषा भी पूर्ण हो जायेगी।

‘नियति ने यह निश्‍चि‍त कर लिया था’

इसके अतिरिक्‍त वे यह भी कहते हैं कि कोई भी घटना अंतत: वास्‍तविकता में घटित होने से पहले व्यक्त‍ि के मन-मस्तिष्‍क में आकार लेती है। उस समय मुझे लग रहा था कि नियति ने यह निश्‍चि‍त कर लिया है कि एक दिन अयोध्‍या में श्रीराम का एक भव्‍य मंदिर अवश्‍य बनेगा। बस, अब केवल समय की बात है। आडवाणी जी बताते हैं कि रथयात्रा आरम्‍भ होने के कुछ दिनों बाद ही मुझे इसका अनुभव हो गया था कि मैं तो मात्र एक सारथी था। रथयात्रा का प्रमुख संदेशवाहक स्‍वयं रथ ही था और पूजा के योग्‍य इसलिये था क्‍योंकि वह श्रीराम मंदिर के निर्माण के पवित्र उद्देश्‍य की पूर्ति के लिये उनके जन्‍मस्‍थान अयोध्‍या जा रहा था। वे इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी याद करते हैं। प्राण प्रतिष्‍ठा के भव्‍य आयोजन में वे उनकी कमी को महसूस कर रहे हैं।


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