बिहार के दिग्गज नेता रहे सदानंद सिंह का आज दूसरी पुण्यतिथि है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सदानंद सिंह का आठ सितंबर 2021 को निधन हो गया था। वे भागलपुर जिले के कहलगांव विधानसभा से वे नौ बार विधायक रहे। सदानंद सिंह बिहार विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे। दो महीने बीमार रहने के वजह से पटना के अस्पताल में भर्ती थे। सदानंद सिंह के निधन के बाद से बिहार के राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी।

पटना में खगौल के पास एक निजी अस्पताल क्यूरिस हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांसें ली थी। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। लीवर सिरोसिस की बीमारी से परेशान थे। दिल्ली के प्रसिद्ध डॉक्टर एसके सरीन से लीवर का इलाज कराया था। उसके बाद पटना लौटे, लेकिन तकलीफ बढ़ी तो फिर अस्पताल में एडमिट होना पड़ा। पटना में उनकी स्थित कभी ठीक तो कभी नाजुक हो जा रही थी। लीवर सिरोसिस जब बढ़ने लगा तो किडनी में इंफेक्शन हो गाया। इसके बाद मंगलवार को उनका डायलिसिस किया गया। लेकिन उनके शरीर ने डायलिसिस बर्दाश्त नहीं किया और 8 सितंबर 2021 को सुबह नौ बजकर नौ मिनट पर उनका निधन हो गया था। उन्हें एक पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। शुभानंद मुकेश राजनीति में बहुत एक्टिव हैं। वे अभी बिहार जदयू के प्रदेश महासचिव एवं कोशी प्रमंडल प्रभारी है। पिता के जाने के बाद से शुभनंद मुकेश राजनीतिक में काफी सक्रिय है। तीन बेटियां सुचित्रा कुमारी, सुदिप्ता कुमारी और सुविजया कुमारी हैं।

 

लंबा है राजनीतिक इतिहास, नौ बार रहे थे विधायक

सदानंद सिंह का लंबा राजनीतिक सफर रहा है। वह पहली बार कहलगांव सीट से 1969 में जीत कर विधायक बने थे। विधानसभा अध्यक्ष के अलावा बिहार सरकार में कई विभागों के मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह भागलपुर की कहलगांव विधानसभा सीट से नौ बार विधायक भी रहे थे। 2020 विधानसभा चुनाव में उनकी जगह बेटे शुभानंद मुकेश ने ली थी।

जमीनी नेताओं में थी पहचान, उम्र की वजह से राजनीति से दूर हुए

सदानंद सिंह की पहचान बिहार के जमीनी नेताओं में होती थी। साल 1969 में वो पहली बार कहलगांव सीट से विधायक बने थे। 1969 से 2015 तक लगातार 12 बार कहलगांव सीट से चुनाव लड़े और नौ बार जीते। साल 1977 की कांग्रेस विरोधी लहर में भी सिंह कहलगांव सीट से कांग्रेस के टिकट पर ही जीते थे। पार्टी में कुछ विवाद की वजह से उन्होंने 1985 में कहलगांव से निर्दलीय भी चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। 2000-2005 तक वे बिहार विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। एक बार कांग्रेस के टिकट पर भागलपुर लोकसभा का चुनाव लड़े। हालांकि, सफलता नहीं मिली। 2015 विधानसभा चुनाव के बाद ही उन्होंने संकेत दे दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा।