उत्तर बिहार में कड़ाके की ठंड पड़ने के बावजूद सभी स्कूल का संचालन लगातार जारी है. दो-तीन दिन पहले बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने एक पत्र जारी कर सभी शिक्षा पदाधिकारी और जिलाधिकारी को यह निर्देश कर दिया था कि किसी भी सूरत में स्कूल में छुट्टी नहीं होगी।

केके पाठक की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

इसको लेकर बिहार के पटना में डीएम और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच विवाद भी चल रहा है. इसी दौरान बुधवार को बिहार के अलग-अलग जिलों में कुल 5 बच्चों की मौत हुई थी, जिसके पीछे का कारण ठंड को बताया गया था. मृतकों में एक मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां इलाके का बच्चा भी शामिल है।

मुजफ्फरपुर कोर्ट में मुकदमा दर्ज

बच्चे की स्कूल में तबीयत खराब होने के बाद उसे आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी मौत हो गई. इस मामले को लेकर शिक्षा विभाग बिहार के अपर मुख्य सचिव केके पाठक, संयुक्त सचिव कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव और मुजफ्फरपुर जिला शिक्षा पदाधिकारी अजय कुमार सिंह के खिलाफ परिवाद दर्ज कराया गया है।

संयुक्त सचिव और मुजफ्फरपुर DEO पर भी केस

अधिवक्ता सुशील कुमार सिंह ने मुजफ्फरपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में परिवाद दर्ज कराया है. परिवादी के द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि अमानवीय तरीके से इतनी जबरदस्त सर्दी के बावजूद स्कूल को खुला रखना और जबरन बच्चों को बुलाना एक सोची समझी साजिश है और यह बड़ा अपराध है।

“बिहार में ठंड का पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड टूटा है. इतनी ठंड में बच्चे मोहम्मद कुर्बान की मृत्यु हो गई है. मामला बोचहां राघो मझौली स्कूल का है. इस मौत के लिए जो पदाधिकारी जिम्मेदार हैं उनके विरुद्ध हमने अदालत में मुकदमा दर्ज कराया है. केके पाठक, कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव और अजय कुमार सिंह के खिलाफ धारा 304 A के तहत मुकदमा दर्ज कराया है.”- सुशील कुमार सिंह, अधिवक्ता सह परिवादी

अलग-अलग जिलों में पांच बच्चों की मौत

परिवादी ने बताया कि कोर्ट ने मामला स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 3 फरवरी मुकर्रर की है. बिहार के स्कूलों में गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं. उनके पास गर्म कपड़े, जूते मोजे का अभाव रहता है. ऐसे में उन अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट है. गरीबों की स्थिति से इन लोगों को कोई वास्ता नहीं हैं. बच्चों की अनुपस्थिति में नाम काटने का आदेश था. इस डर से बच्चे ठंड में भी स्कूल जाने को विवश हैं।


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