पूर्वी बिहार और कोसी-सीमांचल के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (मायागंज अस्पताल) में डेंगू वार्ड के मरीजों के साथ-साथ कोरोना मरीजों का इलाज करना मुहाल हो चला है। डेंगू मरीजों के लिए इलाज के दरवाजे खुले तो कोरोना मरीजों के लिए इलाज के दरवाजे बंद हो गये। आलम ये है कि मायागंज अस्पताल में अब कोरोना मरीजों के भर्ती के लिए ‘नो रूम’ की स्थिति हो गई है।

साल 2020 के बाद जुलाई माह तक मायागंज अस्पताल में बने एमसीएच बिल्डिंग में 100 बेड पर कोरोना के मरीजों का इलाज होता था। लेकिन आज की तारीख में जहां इस बिल्डिंग के भूतल पर 31 बेड का डेंगू वार्ड बना दिया गया है तो वहीं दूसरे तल पर मातृ अस्पताल का संचालन हो रहा है। ऐसे में अब आज की तारीख में इस बिल्डिंग में कोरोना के मरीजों के लिए एक भी बेड नहीं है। ऐसे में अगर कोरोना संक्रमण बढ़ता है तो मायागंज अस्पताल में कोरोना संक्रमितों के लिए एक बेड तक उपलब्ध नहीं होगा।

यही कारण है कि 16 अगस्त को अस्पताल के मेडिसिन विभाग में भर्ती खगड़िया जिले के नयागांव परबत्ता निवासी 28 वर्षीया महिला जब कोरोना संक्रमित हुई तो उसके लिए अलग से बेड उपलब्ध कराने में अस्पताल प्रबंधन एवं प्रशासन को घंटों लग गये। एहतियातन उसे मेडिसिन विभाग के रिसेसिटेशन रूम में भर्ती किया गया।

अब अगर कोरोना के मामले मिलते हैं तो उसे रेफर करने के लिए अलावा एक ही विकल्प बचेगा कि किसी दूसरे मरीज के इलाज के लिए बने वार्ड को कोरोना वार्ड में तब्दील कर दिया जाए। अधीक्षक डॉ. उदय नारायण सिंह ने कहा कि अगर कोरोना का संक्रमण बढ़ता है और अलग से वार्ड बनाने की नौबत आती है तो इसके लिए विभाग से तत्काल ही पत्र भेजकर मार्गदर्शन मांगा जाएगा।

100 बेड का फैब्रिकेटेड अस्पताल दो साल से बन रहा

इसी तरह कोरोना की दूसरी लहर यानी 2021 से इस अस्पताल परिसर में 100 बेड का फैब्रिकेटेड अस्पताल बन रहा है, जो आज की तारीख तक तैयार नहीं हो सका है। जबकि इसे बनाने का उद्देश्य ही ये रहा है कि इसमें कोरोना मरीजों का इलाज होगा। बीएमएसआईसीएल द्वारा बनाए जा रहे इस फैब्रिकेटेड अस्पताल को मार्च 2022 में ही तैयार हो जाना था। लेकिन निर्माणदायी एजेंसी की धीमी रफ्तार ने इस अस्पताल के पूरे होने के लक्ष्य को अब तक अपूर्ण बनाए रखा है।


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