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 केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय की तरफ से देशभर के अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में बड़े स्तर पर घोटाला सामने आया है। देश के 21 राज्यों के 1572 शिक्षण संस्थानों में इसका जाल फैला हुआ है। इनमें 830 संस्थान पूरी तरह से फर्जी या अक्रियाशील पाए गए। जांच के दायरे में बिहार के भी 120 शिक्षण संस्थान शामिल हैं, जिसमें 25 संस्थान फर्जी हैं।

सीबीआई की नई दिल्ली स्थित अपराध नियंत्रण इकाई ने इस राष्ट्रव्यापी घोटाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। इसमें केंद्रीय जांच एजेंसी ने बिहार सरकार को भी पत्र लिखकर इस घोटाले की जांच अपने स्तर से कराने की अपील की है। क्योंकि, इसमें बड़ी संख्या में ऐसे छात्रों के नाम भी सामने आए हैं, जिनका आवासीय प्रमाण-पत्र बिहार का बना था, लेकिन वे असम में पढ़ रहे हैं।

इन मामलों की जांच असम के साथ समन्वय स्थापित कर की जाएगी। अब तक की जांच में वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2021-22 के बीच सिर्फ फर्जी संस्थानों में गलत छात्रों का नामांकण दिखाते हुए 144 करोड़ 33 लाख रुपये की छात्रवृत्ति की राशि के गबन की बात सामने आई है। जांच का दायरा बढ़ने के साथ घोटाले की राशि भी बढ़ने की संभावना है।

राशि हड़पने के लिए कई स्तर पर हुई धांधली 

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल के माध्यम से डीबीटी के जरिये मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के विभिन्न संस्थानों में पढ़ने वाले 1 लाख 80 हजार छात्रों के बीच राशि का वितरण किया गया था। इस राशि को हड़पने के लिए कई स्तर पर धांधली हुई। सीबीआई ने अब तक की जांच में संबंधित संस्थानों के संचालक, जिला एवं राज्य के नोडल पदाधिकारी, संबंधित संस्थानों के नोडल अधिकारी, निजी लोग या दलाल को संदिग्ध माना है।

जांच में इन संस्थानों के नोडल अधिकारी के तौर पर साइबर कैफे संचालकों के नाम हैं। इनके स्तर से ही छात्रवृत्ति पाने के लिए बड़ी संख्या में छात्रों के फर्जी आवेदन भरे गए थे। यहां के कई स्कूलों ने अपने पूरे कोड नंबर का उपयोग करके ही आवेदन भर दिए थे। छात्रवृत्ति देने के पहले संस्थान के नोडल अधिकारी व जिला या राज्य स्तर के नोडल अधिकारी के स्तर पर स्वीकृति प्रदान करने का प्रावधान है।


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