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संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है जिसमें आज गुरुवार, 14 दिसंबर को लोकसभा में तीन अहम नए क्रिमिनल बिल पर चर्चा होने जा रही है। बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह पहले ही इन तीनों बिलों (भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य बिल-2023) को पेश कर चुके हैं। ये क्रमश: इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट में संशोधन करेंगे।

पहले ही हो चुके हैं पेश

जानकारी दे दें कि इन तीनों बिलों में संशोधन के लिए पहले जो बिल पेश किए गए थे, उन्हें संसद की स्थाई समिति के पास भेज दिया गया था, फिर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इन बिलों को वापस ले लिया गया था और अब इन्हें रिड्राफ्ट करके फिर से पेश किया गया है। CrPC की जगह आ रहे नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 (BNSS) में क्रिमिनल लॉ के तहत पुलिस कस्टडी की अधिकतम सीमा को 15 दिन से बढ़ाकर 60 दिन या 90 दिन (क्राइम के आधार पर) कर दिया गया है। यानी कि नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 के तहत पुलिस अब किसी को भी अधिकतम 90 दिनों तक कस्टडी में रख सकेगी।

सीआरपीसी में दो प्रावधान हटे

CrPC की जगह लेने वाले कानून के रिवाइज्ड एडिशन से दो प्रावधानों को हटा दिया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (द्वितीय)  में अब 531 धाराएं हैं हालांकि, पहले बिल में 533 धाराएं शामिल थीं, जिनमें से 150 को बदलाव के बाद कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर से लिया गया था। नई कोड में पुरानी CrPC की 22 धाराओं को सस्पेंड करने का प्रस्ताव था और इनमें 9 धाराओं को नया जोड़ा जाना था। इसमें धारा 445 (हाईकोर्ट द्वारा विचार किए जाने के अपने फैसले के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा बयान) और 479 (जमानत और जमानत बॉन्ड) जो इस बिल के पिछले एडिशन का हिस्सा थे, उन्हें हटा दिया गया है।

अग्रेजों के शासन में बनी थी IPC

IPC ब्रिटिश काल में साल 1860 में बनाई गई थी। इसके तहत कौन-से कृत्य अपराध हैं और उसके तहत क्या सजा होनी चाहिए, इसका प्रावधान था। अब इसी नाम बदलकर अब इंडियन ज्यूडिशियल कोड रखने का प्रस्ताव है। दूसरा कानून सीआरपीसी से जुड़ा है। इसे भी अंग्रेजों ने लागू किया था। साल 1989 में लागू इस कानून के तहत गिरफ्तारी, मामले की जांच और मुकदमा चलाने की प्रोसेस का जिक्र है। इसकी जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 लाया गया है। तीसरा कानून  इंडियन एविडेंस एक्ट यानी भारतीय साक्ष्य अधिनियम है, जिसे साल 1972 में लाया गया था। मुकदमे के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा। और गवाहों व आरोपियों के बयान कैसे दर्ज होंगे, इसका जिक्र इस एक्ट में किया गया है। अब इसकी जगह भारतीय साक्ष्य बिल 2023 (Indian Evidence Bill 2023) लेगा।

पुलिस की मनमानी का खतरा

नए बिल के तहत आम नागरिकों पर पुलिस की मनमानी का खतरा बढ़ने की आशंका है। पहले ये प्रावधान विशेष कानूनों तक सीमित थे पर अब इसे सामान्य आपराधिक कानून के तहत लाया जा रहा है। हालांकि, राहत की बात ये है कि नए बिल में राजद्रोह को खत्म कर दिया गया है। दूसरी तरफ इसमें आतंकवाद की परिभाषा जोड़ दी गई है, जो कि IPC में शामिल नहीं था।


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