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बिहार की सियासत में सियासतदानों के कई फैसले अक्सर हैरान कर देते हैं. कई बार धुर विरोधी राजनेता और सियासी दल एक दूसरे के साथ आ जाते हैं और सियासी बिसात ही बदल जाती है. एक बार फिर से बिहार की सियासत में एक नए किस्म की सुगबुगाहट देखने को मिल रही है. इससे कयासबाजी का दौर भी तेज हो गया है. पिछले कुछ दिनों से चर्चा का बाजार फिर से गर्म है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव कोई ऐसा फैसला करेंगे जो सबसे बड़े राजनीतिक उलटफेर की बानगी बनेगा. इसमें जदयू का राजद में विलय होने की बातें सबसे प्रमुख है. अगर ऐसा हुआ तो यह बिहार ही नहीं देश की सियासत के लिए एक बड़े बदलाव का सूचक बन जाएगा. वहीं कई स्थापित राजनेताओं का कद भी बदल जाएगा.

दरअसल अक्टूबर में भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि जदयू टूटने की ओर बढ़ रही है और अगले चुनाव से पहले ललन सिंह की पार्टी का राजद में विलय हो जाएगा. उनका जदयू को ललन सिंह की पार्टी बताकर संकेत था कि जदयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच अंतर्कलह है. सुशील मोदी की बातों को ही आगे बढ़ाते हुए पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी यही दोहराया. केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद गिरिराज सिंह ने दावा किया है कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू राजद में विलय होने वाली है और नीतीश कुमार की भूमिका भी तय कर दी गई है.

जदयू को लेकर भाजप नेताओं के इन दावों ने सियासी भूचाल मचा दिया है. इस बीच, 29 दिसंबर को राजधानी दिल्ली में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति और राष्ट्रीय परिषद की बैठक होगी. इसमें नीतीश कुमार को लेकर कहा जा रहा है कि वे कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. विशेषकर ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाने को लेकर मीडिया के एक वर्ग में जोरदार चर्चा है. हालांकि शनिवार को ललन सिंह ने ऐसी खबरों का खंडन किया. उन्होंने ऐसे दावों के लिए भाजपा नेताओं को आड़े हाथों लिया और सस्ती लोकप्रियता तथा मीडिया में सुर्खिया बटोरने के लिए इन बयानों को दिया जा रहा बताया.

ललन सिंह को 31 जुलाई 2021 को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. उनका दो साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है. ऐसे में जदयू में अध्यक्ष बदलने की बातों को हवा दी जा रही है. इस बीच, दावा यह भी किया जाता है कि ललन सिंह की इन दिनों लालू यादव और तेजस्वी यादव के करीबी हो गए हैं. हालांकि ललन सिंह इस सवाल को लेकर मीडिया और भाजपा को लताड़ चुके हैं. वहीं तेजस्वी यादव भी इसे लेकर पहले ही कह चुके हैं कि गिरिराज सिंह सिर्फ सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा बयान दिए हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार और लालू यादव की विशिष्ट राजनीतिक पहचान है. ऐसे में दोनों अगर एक साथ आते हैं तो उन्होंने अब तक जो पहचान स्थापित की है वह खत्म हो जाएगी. इतना ही नहीं दोनों की सियासत अलग अलग रहने पर जातीय और सामाजिक तौर बेहद मजबूत है. अगर वे एक साथ आते हैं तो इससे उनके साथ रहने वाले कई नेताओं को झटका लगेगा. नीतीश कुमार कभी नहीं चाहेंगे कि उनके जीवन भर की सियासी कमाई खत्म हो जाए. इतना ही नहीं ललन सिंह के लालू-तेजस्वी के साथ जाने की बातें भी राजनीतिक जानकर नकारते हैं. दोनों अपनी विशिष्ट पहचान और पकड़ रखते हैं. ललन सिंह को लेकर जदयू से अलग होने की खबरें भी भाजपा की ओर से सियासी तंज हो सकता है.


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