उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने के बाद Live in Relationship (सहवासी संबंध) के नियम कायदे सख्त होंगे। लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है तो नियमों की अवहेलना करने पर अर्थदंड और सजा का प्रविधान किया गया है।
यही नहीं, महिला के अधिकार को सुरक्षित करते हुए प्रविधान किया गया है कि यदि कोई पुरुष अपनी पार्टनर को छोड़ देता है तो महिला को भरण पोषण का दावा करने का अधिकार होगा। यही नहीं, सहवासी संबंध से जनित कोई भी बच्चा उस युगल की वैध संतान माना जाएगा और उसे सभी अधिकार प्राप्त होंगे।
विधेयक में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर सख्त प्रविधान करने के साथ ही इसकी परिभाषा को भी रेखांकित किया गया है। एक वयस्क पुरुष व महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं। वह भी तब, जबकि वे पहले से अविवाहित हों अथवा किसी अन्य के साथ लिव इन में न रह रहे हों। साथ ही निषेध संबंधों की डिग्री में न आते हों। इस डिग्री में नजदीकी रिश्तेदारों के साथ संबंध निषेध हैं।
राज्य के भीतर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले चाहे उत्तराखंड के निवासी हों अथवा नहीं, उन्हें निबंधक के पास अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण के लिए वेब पोर्टल भी तैयार होगा।
पंजीकरण के बाद निबंधक सबंधित युगल को इसका प्रमाणपत्र जारी करेगा। इसके आधार पर संबंधित युगल किराये पर घर, हास्टल अथवा पीजी में रह सकेगा। लिव इन में रहने वालों में से यदि किसी एक की उम्र 21 वर्ष से कम होने पर इसकी सूचना उसके माता-पिता एवं अभिभावकों को निबंधक द्वारा दी जाएगी। यही नहीं, यदि कोई युगल संबंध विच्छेद करता है तो इसका भी उसे पंजीकरण कराना होगा।
तय नियमों का उल्लंघन करने पर अर्थदंड व सजा का प्रविधान भी विधेयक में किया गया है। यदि कोई युगल एक माह से अधिक समय तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने पर इसका कथन प्रस्तुत नहीं करता है तो इसमें दोषी ठहराए जाने पर तीन माह के कारावास व 10 हजार का जुर्माना अथवा दोनों से ही उसे दंडित किया जा सकता है।
पंजीकरण में मिथ्या जानकारी देने पर छह माह के कारावास व 25 हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों का प्रविधान रखा गया है। विधेयक के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली किसी महिला को यदि पुरुष साथी छोड़ देता है तो वह महिला भरण-पोषण के लिए संबंधित क्षेत्र के न्यायालय में दावा प्रस्तुत कर सकती है।
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